Unit - 2 भाषिक योग्यताओं का विकास

Unit -
           
 श्रवण कौशल - किसी भी प्रकार की कोई भी आवाज सुनने और सुनकर उसका अर्थ एवं भाव समझने की क्रिया को श्रवण कौशल कहा जाता है श्रवण कौशल का सैद्धांतिक पक्ष ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत दिया गया है सामान्यतः कानो द्वारा जो ध्वनि ग्रहण की जाती हैं और मस्तिष्क द्वारा उनकी अनुभूति तथा प्रत्यक्षीकरण को श्रवण कहते हैं मौखिक भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त भाव एवं विचारों को सुनकर समझना भाषा के संदर्भ में अर्थ बोध एवं भाव की प्रतीति सुनने के आवश्यक तत्व होते हैं इस प्रकार जब कोई व्यक्ति हमारे सामने अपने भाव एवं विचार मौखिक भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है और हम उसे सुनकर यथा भाव एवं विचार समझते और ग्रहण करते हैं तो हमारी यह क्रिया सुनना अथवा श्रवण कहलाती है|
श्रवण कौशल के साधन -
    श्रव्य साधनों का संबंध कानों से है इन उपकरणों में मुख्यतः रेडियो ग्रामोफोन टेप रिकॉर्डर टेलीफोन आदि हैं|
श्रवण कौशल की विधियां-
वार्तालाप -
    एक अध्यापक को शिक्षण के साथ साथ अपने विद्यार्थियों को परस्पर विचार-विमर्श चर्चा वार्ता आदि के भी पर्याप्त अवसर प्रदान करने चाहिए जिससे उनमें श्रवण और अभिव्यक्ति कौशल का विकास हो सके और साथ ही विद्यार्थियों की झिझक भी दूर हो सकेगी|
वाक्य रचना -
    वाक्य भाषा का महत्वपूर्ण चरण अथवा इकाई है स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो मुख से निकलने वाली सार्थक ध्वनि समूह को जिसमें व्यक्ति अपनी आकांक्षाओं अभिवृत्तियों और भावनाओं का निर्देशन करता है वह वाक्य कहलाता है अथवा पूर्ण अर्थ की प्रतीति कराने वाले शब्द समूह का नाम वाक्य है|
प्रश्नोत्तर -
    प्रश्नों का बड़ा महत्व है मानव मन सदा जिज्ञासा से भरपूर रहा है उसकी जिज्ञासाओं के समाधान हेतु प्रश्न करने की कला आनी चाहिए प्रश्नोत्तर पद्धति के जनक सुकरात को माना जाता है प्रश्नोत्तर द्वारा हम भाषाई कौशलों के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं अध्यापक को चाहिए कि वह बालकों से छोटे-छोटे प्रश्न करें और उन्हें भी प्रश्न करने के अवसर दें|
    प्रश्नोत्तर प्रक्रिया को सफल बनाने हेतु चित्र का प्रदर्शन भी किया जा सकता है प्रश्नोत्तर में स्पष्टता और बोधगम्यता होनी चाहिए प्रश्नों की भाषा सरल हो, प्रश्न का आकार बड़ा ना हो ,प्रश्न ज्ञानवर्धक हो, तर्क पर आधारित प्रश्न छात्रों की मानसिक क्षमता का विकास करते हैं अतः प्रश्न कौशल का अभ्यास भी भाषाई कौशल के लिए बहुत आवश्यक है|
कहानी कथन -
    कहानी का नाम सुनते ही बच्चे चाहचाहा जाते हैं, अतः बच्चों को कहानियां सुनाकर भी भाषाई कौशलों का विकास किया जा सकता है कहानियां बच्चों का सर्वाधिक ध्यान आकर्षित करती है, अभिव्यक्ति कौशल के विकासार्थ अधूरी कहानी सुना कर उसे पूरी करने को भी कहा जा सकता है इससे बच्चे में बौद्धिक क्षमता, तर्कशक्ति, शब्द संयोजन ,कल्पना शक्ति का विकास होगा|
घटना वर्णन -
    कहानी के अतिरिक्त इसी पद्धति से बच्चों के जीवन में घटित कोई महत्वपूर्ण घटना, स्वप्न आदि का वर्णन करने को भी कहा जा सकता है इससे बच्चों की अभिव्यक्ति में निखार आएगा, स्मृति, कल्पना का घटना के साथ साथ घटना अनुसार भाव में परिवर्तन आवश्यक है, इसकी शिक्षा बालक को अवश्य देनी चाहिए शिक्षक को चाहिए कि वह बालक द्वारा घटना सुनाते समय उसकी बातों को ज्यों का त्यों स्वीकार करें ना कि बीच-बीच में टोंक कर उसके विचारों को अवरुद्ध करें ऐसा करने से बालक की अभिव्यक्ति क्षमता पर बहुत बुरा दुष्प्रभाव पड़ता है घटना के अतिरिक्त किसी मेले का दृश्य, बरसात की मस्ती, पिकनिक की स्मृति का वर्णन भी किया जा सकता है|
यात्रा वर्णन :-
    किसी भी यात्रा को अविस्मरणीय बनाने और उसका आनंद पुनः स्मृति के आधार पर लेने के लिए उसका वर्णन करना आवश्यक है इस प्रकार वर्णन करने से भाषाई कौशलों का विकास होगा|
    जब बालक यात्रा का वर्णन करते समय अटक जाए तो उसे प्रश्न के माध्यम से उकसाना चाहिए कि वह और वर्णन कर सके जैसे मेले के वर्णन का कहें कि अच्छा बताओ मेले में और क्या क्या देखा मेले में तुमको क्या खरीदने का विचार आया अंत में इस यात्रा से हुई लाभों को भी जानने की चेष्टा की जानी चाहिए इस प्रकार यात्रा का वर्णन पूर्ण रूप से हो सकेगा|
काव्य पाठ -
    काव्य में लयबद्ध ध्वनियों का आनंद भरा होता है अतः बच्चों को वह काफी पंक्ति बहुत रोचक लगती है अतः काव्य पाठ के अवसर विद्यालय में अक्सर देना चाहिए बच्चों की स्मरण शक्ति अच्छी होती है अतः वे इन्हें आसानी से याद भी कर लेंगे बच्चों को अपने आसपास के परिवेश और पशु पक्षी खिलौने से संबंधित कविता सुनना अच्छा लगता है इन कविताओं की भाषा सरल और बोधगम्य होनी चाहिए बच्चों के स्तर की भाषा होनी चाहिए इन काव्य पंक्तियों को गुनगुनाते हुए उन्हें थकान भी महसूस नहीं होनी चाहिए अध्यापक को चाहिए कि वह कविता की पंक्तियों का समूह और आदर्श वाचन करें और कराएं|
 ध्वनि विभेदन  ध्वनि विभेदन से तात्पर्य उन बच्चों से है जिनमें 7 या 8 वर्ष की आयु के ऊपर वाणी संबंधी कठिनाई  होती है उनमें विभिन्नन वाणी ध्वनियों ध्वनि विभेदन में भी कठिनाई होती है इसी कारण उनकी वाचिक योग्यता कम पड़ जाती है ध्वनि विभेदन की समस्या उन बच्चों में हो सकती है जो सामान्य रूप से सुन सकते हैं 3 और 4 वर्ष की आयु के बच्चे वाणी ध्वनियों के बीच विभेदन करने में अशुद्धियां करते हैं परंतु शीघ्र ही वे इस समस्या से उभर जातेे हैं कई बार जब वे सुनते हैं तो ध्वनियों में विभेदन कर सकते हैं परंतु वे स्वयं ऐसी ध्वनियां उत्पन्न नहीं कर पाते अतः यदि कोई अभिभावक उनके किसी किसी गलत शब्द को दोबारा बोल कर सुनाते हैं तो बच्चों में आत्मविश्वास की भावना जन्म लेती है यह इसलिए होता है कि वह सुन सकते हैं और विभेदन  भी कर सकते हैं परंतु कुछ ध्वनियों को बोल नहीं सकते परंतु यह समस्या यदि बच्चे में 7 या 8 वर्ष के बाद भी जारी रहती है तो शिक्षक को उपचारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है 

वाणी संबंधी समस्या- किसी भी भाषा की ध्वनि संरचना स्वर विज्ञान द्वारा परिभाषित होती है स्वर विज्ञान का संबंध वाणी के ध्वनि स्वरूप से होता है जिसमें ध्वनि की उच्चता तथा स्वर मान सम्मिलित है तथा स्वानिकि का संबंध स्वयं वाणी की ध्वनि से होता है वाणी संबंधी समस्या भिन्न-भिन्न हो सकती है जैसे अस्थमा  स्वरयंत्र दोष फटी आवाज इत्यादि 
हकलाना और तुतलाना- हकलाना और तुतलाना से तात्पर्य यह है कि बच्चे शब्द का शुद्ध व स्पष्ट उच्चारण नहीं कर पाते हैं प्रायः हकलाना तुतलाना बच्चों में बाल्यावस्था में होता है उसमें बच्चों में वाणी का विकास सामान्य रूप से होता है फिर भी वह हकलाते और  तुतलाते हैं जैसे करेला को का का का करेला दिल्ली को दीदी दीदी दिल्ली आदि 
हड़बड़ाहट - जिन बच्चों की वाणी या भाषा बोधगम नहीं रहती और आत्मविश्वास की कमी रहती है वह बच्चे हड़बड़ाहट का शिकार होते हैं यही कारण है कि बच्चे जब तेजी से बोलते हैं तो वह कुछ अक्षरों को छोड़ देते हैं या अस्पष्ट उच्चारण करते हैं या मिलाकर उच्चारण करते हैं यह अनुपयुक्त वाक्यों का प्रयोग उच्चारण में करते हैं यद्यपि वह तेजी से बोलते हैं परंतु उनकी वाणी में झटके लगते हैं और उनमे लय का अभाव होता है और बीच बीच में रुक भी जाते हैं तथा जल्दबाजी में कुछ शब्दों को ख जाते हैं या शब्दों का लॉक कर जाते हैं ऐसे बच्चे अपनी गति को कम करने का प्रयास करते हैं इससे उनकी हर बड़ा हट भी कम होने लगती है 
श्रवण आधारित खेल-   खो खो कबड्डी आंखों में पट्टी बांधकर खेलना इत्यादि


वाचन कौशल - वचन एक कला है वाचन की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता होती है | व्यक्ति का सबसे बड़ा आभूषण उसकी संस्कृति एवं मधुर वाणी क्योंकि अन्य सभी आभूषण तो टूट या घिस जाते हैं, किंतु वाणी सदा बनी रहती है | व्यक्ति का एकमात्र आभूषण उसकी मधुर वाणी है,  अमृत भी मधुर वाणी में होता है, मनुष्य अपने भावों एवं विचारों को बोल कर अथवा लिखकर व्यक्त करता है भावों एवं  विचारों का संप्रेषण या प्रकाशन ही रचना है |
कैथरीन ओकानर के अनुसार - वाचन  वह  सीखने की जटिल प्रक्रिया है जिसमें सुनने के गति वाही माध्यमों का मानसिक पक्षों से संबंध होता है |
डॉ0 आर0जी0 कुशवाहा के अनुसार - वाचन  सीखने की वह प्रक्रिया है जिसमें श्रवण करता वाचक की ध्वनियों को ग्रहण करता है |
 भाषाओं के विश्लेषण से विदित होता है कि उनके अक्षरों की ध्वनिया विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकार से निकलती है इसका अर्थ यह हुआ कि अक्षर ध्वनि परिस्थिति अनुसार बदल जाती है इसलिए इन भाषाओं के विद्वानों ने शुद्ध उच्चारण के लिए नियमों को प्रतिपादित किया है परंतु हिंदी देवनागरी लिपि में ऐसा नहीं है, अक्षरों की ध्वनियाँ नहीं बदलती है इसलिए हिंदी के शिक्षक को भाषा सिखाने अथवा वाचन के लिए अलग से आवश्यकता नहीं होती है वाचन में शब्दों के उच्चारण का विशेष महत्व होता है भाषा शिक्षण वाचन एवं लिखने से आरंभ किया जाता है इस संबंध में सभी एकमत नहीं है मांटेसरी शिक्षा प्रणाली लिखने से आरंभ करने के पक्ष में है परंतु अन्य सभी वाचन से आरंभ करने के पक्षधर हैं क्योंकि ध्वनि से ज्ञान सरल है लिखने से बोलना सरल होता है लिखने से ध्वनि और लिपि के रूप को समझने में समय भी लगता है लिपिबद्ध शब्दों को सरलता से पढ़ाया जा सकता है |
वाचन शिक्षण की सार्थक विधियां - वाचन शिक्षण में सार्थक विधियों को प्रयुक्त किया जाता है यहां वाचन की प्रमुख विधियों का उल्लेख किया गया है –
                                            1 - अक्षर बोध विधि
                                            2- देखो और कहो विधि
                                            3 -अनुकरण विधि
                                           4 - ध्वनि साम्य विधि
                                           5 – कहानी कथन 
 अक्षर बोध विधि- यह सबसे प्राचीन शिक्षण विधि है, इसमें सर्वप्रथम स्वर तथा व्यंजन शब्दों को पढ़ाया जाता है इस विधि में अक्षर की दूरियों को प्रधानता दी जाती है शिक्षण में बालक को शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराया जाता है इसके बाद बालक स्वर एवं व्यंजन का मिलान सीखता है यही मिलान वाक्यों की रचना में सहायता करती है बालक पूर्ण वाक्य की रचना करके वाचन करने लगता है |
      अक्षर बोध विधि से बालक का उच्चारण शुद्ध होता है अक्षर,शब्द तथा वाक्य का क्रमबद्ध ज्ञान होता है अक्षरों में स्वर और व्यंजनों को मिलाने से नए शब्दों की रचना होती है इस विधि से व्याकरण तथा भाषा संबंधी नियमों का बोध भी बहुत सरलता से होता है |
देखो और कहो-  इस विधि में अक्षरों के बोध के स्थान पर शब्द बोध कराया जाता है चित्र देखकर बालक को स्वयं ही उस शब्द का ध्यान आ जाता है चित्र ऊपर अथवा नीचे बना रहता है उसे देखो और कहो बालक देखकर समझने का प्रयास करता है फिर बोलता है चित्र बालक के परिचय की परिधि में हो बालक के स्तर की वस्तुओं के चित्र तैयार किए जाते हैं उन्हीं को प्रयोग किया जाता है चित्रों को श्यामपट्ट  पद पर भी बनाया जा सकता है |
इस बिधि की विशेषता है – रोचकता, आकर्षण और मनोहरता चित्र के साथ शब्दों का चित्र बालकों के मानसिक पटेल पर छा जाता है इन शब्दों और चित्रों के आधार पर वर्णमाला का ज्ञान भी दे दिया जाता है इसमें क्रिया विपरीत होती है शब्दों के सीखने के बाद उनके अक्षरों को सीखता है इस विधि से प्रचलित शब्दों का वाचन सरलता से सीख जाता है |
अनुकरण विधि-  विद्यार्थी अनुकरण विधि से ही अधिक सीखते हैं परंतु हिंदी में अंग्रेजी की अपेक्षा कम उपयोग है हिंदी में प्रत्येक अक्षर का ध्वनी निश्चित है जबकि अंग्रेजी अक्षर की ध्वनी निश्चित नहीं है शिक्षक के आदर्श वाचन का अनुकरण जीवन पर्यंत छात्रों के काम आता है शिक्षक के उच्चारण के अनुकरण से ही बालक शुद्ध उच्चारण सीखना है जिससे वाचन में शुद्धता आती है और भावपूर्ण वाचन सीखता है अनुकरण विधि के लिए शिक्षक के वाचन में भावपूर्ण और शुद्ध उच्चारण होना  आवश्यक होता है |
 ध्वनि साम्य विधि -   इस विधि के अंतर्गत ध्वनि की समानता रखने वाले शब्दों को साथ - साथ सिखाया जाता है एक सी ध्वनि के कारण छात्र एक साथ सरलता से सीख लेते हैं जैसे  धर्म-कर्म-गर्म समान ध्वनि होती है इसी प्रकार क्रम श्रम धर्म शब्दों में समान ध्वनि है इस विधि में कभी-कभी अनावश्यक शब्द भी सीखने पड़ जाते हैं जिन्हें हम प्रयोग में नहीं लाते है |
कहानी कथन -  कहानी कथन विधि में बालक अधिक रुचि लेते हैं कहानी को चार पांच वाक्यों में पूर्ण करके सुनानी चाहिए चित्रों की सहायता से कहानी विधि अधिक प्रभावशाली होती है चित्रों को देखकर वाक्यों को पढ़कर कहानी जब पूर्ण ज्ञान रोचकता से हो जाता है भाषा प्रवाह कहानी से ही विकसित होता है कहानी विधि में छात्र अनुकरण से सीखते हैं कहानी कहते समय भाषा की शुद्धता तथा भाव पक्ष को भी ध्यान में रखना चाहिए कहानी विधि से वाचन सीखते हैं तथा मनोरंजन भी होता है कहानी विधि से उत्सुकता बढ़ती है और प्रेरणा मिलती है |
   वचन कौशल की क्रियाएं-  वचन कौशल की क्रियाएं निम्नलिखित है -
                                      1 - पाठ्य पुस्तक
                                      2 - लिखित कार्य 
                                      3 - छात्र क्रिया 
                                      4 -  वार्तालाप 
                                      5 - कहानी कथन
                                      6 - भाषण प्रतियोगिता
                                      7 - वाद विवाद प्रतियोगिता 
                                     8 - कविता पाठ
पाठ्य वस्तु -  पाठ्य वस्तु पढ़ते समय वाचन अथवा मौखिक आत्म प्रकाशन हेतु पर्याप्त समय मिलता है विषय की व्याख्या प्रश्नोत्तर सारांश कथन शब्द प्रयोग तथा वाक्य रचना से छात्रों को वाचन का प्रशिक्षण मिलता है |
 लिखित कार्य -  लिखित कार्य के पहले प्रकरण पर परिचर्चा विचार-विमर्श विषय सामग्री चयन में भी अधिक समय मिल जाता है |
 छात्र क्रिया -  छात्रों की स्वयं स्वयं की क्रियाओं पढ़ने लिखने देखने तथा अनुभव तथा रूप से अपने भावों विचारों को स्वतंत्र रूप में व्यक्त करने का अवसर मिलता है
 वार्तालाप -  विद्यार्थियों में स्वतंत्र रूप से वार्तालाप की सामान्य योग्यता आती है इसका परिवार में साथियों में अधिक अवसर मिलता है अपनी सामान आयु के बालको में वार्तालाप से भी सीखते हैं विद्यालय में होने वाली घटनाओं तथा कार्यक्रमों के वर्णन से वार्तालाप का अवसर मिलता है |
कहानी कथन -  कहानी व मौखिक रचना वाचन का सर्वप्रिय साधन है छोटे बालक कहानी सुनते हैं तथा उनका अनुकरण करने में अधिक रुचि लेते हैं क्योंकि उनका मनोरंजन होता है शिक्षक भी कहानी विधि का प्रयोग छोटे बालकों के लिए करता है |
 वाद विवाद प्रतियोगिता - वाद विवाद प्रतियोगिता वाचन की दृष्टि से अधिक उपयोगी है छात्र अभिनय में स्वयं भाग लेते हैं और उसकी पूर्व तैयारी भी करते हैं |
 कविता पाठ -  कविता पाठ प्राथमिक स्तर पर कविता पाठ वाचन के लिए प्रधान विद्या है तथा उत्तम अवसर है कविता पाठ से रागात्मक क्षमताओं का विकास होता है हृदय के भावों तथा अनुभूतियों को वाचन  से व्यक्त किया जाता है |


पठन कौशल - लिखित भाषा या मुद्रित लिपि संकेतों को देख कर पाठक के मन में जो अर्थ  बिम्ब  बनता है वह पठन कहलाता है  लिपि प्रतीकों की पहचान अर्थ ग्रहण तथा पूर्व पद संबंध जोड़ते हुए आशय समझ लेने का नाम पठन  है पठन  मूल भाव को सीधा ग्रहण करने की शक्ति प्रदान करता है अथवा किसी लिखित पाठ्यवस्तु भाषा को देखकर उसके भाव या आशय  को समझना पठन  कहलाता है पठन  एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है जो स्वयं के आनंद या ज्ञानार्जन के लिए  किया जाता है जैसे पुस्तकों को पढ़ना समाचार पत्रों को पढ़ना आदि भाषा के संदर्भ में पढ़ने  का अर्थ कुछ भिन्न होता है भावों और विचारों को लिखित भाषा के माध्यम से अभिव्यक्ति को पढ़कर समझना पड़ता है लिखने का उद्देश्य होता है कि भाव और विचारों को हम दूसरों तक पहुंचाना चाहते हैं अन्य व्यक्ति जब उसको लिखित भाषा के रूप में पढ़ेगा  तब उसके भाव एवं विचारों को समझ लेगा इस क्रिया को पठन कहते हैं किस सीमा तक कोई व्यक्ति उसके भाव एवं विचारों को समझता है यह उसकी एकाग्रता एवं ग्रहण शक्ति पर निर्भर होता है |
 पठन कौशल की प्रभावशाली विधियां- पठन शिक्षण की  जो विधिया है उनका वर्णन इस प्रकार  है- 
  • 1 - वर्ण विधि 
  • 2 - ध्वनि साम्य  विधि 
  • 3 - देखो और कहो विधि 
  • 4  - वाक्य विधि 
  • 5  - कहानी विधि
  • 6  - मिश्रित विधि
 वर्ण विधि- बालक को वर्णमाला के स्वर,व्यंजन,बाराखड़ी दिखा कर वर्णों को जोड़- जोड़ कर पढ़ना सिखाया जाता है |
ध्वनि साम्य विधि -   इसमें वर्णों और शब्दों की ध्वनि पर विशेष बल दिया जाता है एक सी ध्वनि  वाले शब्दों को एक साथ पढ़ाया जाता है | जैसे – काका,पापा,नाना,नानी,नीली,पीली आदि इस विधि में ध्वनि की साम्यता पर जोर दिया जाता है ना कि अर्थबोध पर |
 देखो और कहो विधि - इस विधि में अक्षरों के बोध के स्थान पर शब्द बोध कराया जाता है| चित्र देखकर बालक को स्वयं ही उस शब्द का ध्यान आ जाता है बालक उसको देखकर समझकर बोलता है जो चित्र बालक के परिचय की परिधि में हो उन्ही वस्तुओं के चित्र तैयार किए जाते हैं प्रायः चित्र के नीचे वस्तु का नाम लिखा जाता है चित्र से शब्द, शब्द से वर्ण, को सिखाना |
वाक्य विधि - भाषा की इकाई वाक्य है इस वाक्य से शिक्षण प्रारंभ किया जाता है लिखने तथा पढ़ने से पूर्व बालक पूर्ण वाक्य सुनता है और बोलता है बालक वाक्य के स्वरूप को दो प्रकार से सीखता है चार्ट का प्रयोग करके एवं अध्यापक के अनुकरण द्वारा |
         इस विधि के आरंभ में शिक्षक एक छोटा वाक्य लिखकर उससे संबंधित चित्र बनाकर पूरे वाक्य को पढ़ना सीखना, बाद में वाक्य से शब्द, शब्द से वर्ण बनाने का कार्य होता है |
 कहानी विधि – प्रायः कहानी में बालक अधिक रुचि लेते हैं शिक्षक की सहायता से कहानी का विस्तार किया जा सकता है कई चित्रों को मिलाकर चित्र से संबंधित वाक्य उसके नीचे लिखकर चार्ट तैयार किया जा सकता है | 
पठन कौशल - लिखित भाषा या मुद्रित लिपि संकेतों को देख कर पाठक के मन में जो अर्थ  बिम्ब  बनता है वह पठन कहलाता है | लिपि प्रतीकों की पहचान अर्थ ग्रहण तथा पूर्व पद संबंध जोड़ते हुए आशय समझ लेने का नाम पठन है पठन मूल भाव को सीधा ग्रहण करने की शक्ति प्रदान करता है अथवा किसी लिखित पाठ्यवस्तु भाषा को देखकर उसके भाव या आशय  को समझना पठन  कहलाता है पठन  एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है जो स्वयं के आनंद या ज्ञानार्जन के लिए  किया जाता है जैसे पुस्तकों को पढ़ना समाचार पत्रों को पढ़ना आदि भाषा के संदर्भ में पढ़ने  का अर्थ कुछ भिन्न होता है भावों और विचारों को लिखित भाषा के माध्यम से अभिव्यक्ति को पढ़कर समझना पड़ता है लिखने का उद्देश्य होता है कि भाव और विचारों को हम दूसरों तक पहुंचाना चाहते हैं अन्य व्यक्ति जब उसको लिखित भाषा के रूप में पढ़ेगा  तब उसके भाव एवं विचारों को समझ लेगा इस क्रिया को पठन कहते हैं किस सीमा तक कोई व्यक्ति उसके भाव एवं विचारों को समझता है यह उसकी एकाग्रता एवं ग्रहण शक्ति पर निर्भर होता है |
 पठन कौशल की प्रभावशाली विधियां- पठन शिक्षण की प्रभावशाली विधियों का वर्णन निम्नलिखित है|  
  • 1 - वर्ण विधि
  • 2 - ध्वनिसाम्य विधि
  • 3 - देखो और कहो विधि
  • 4 - वाक्य विधि
  • 5 - कहानी विधि
  • 6 - मिश्रित विधि
 वर्ण विधि- बालक को वर्णमाला के स्वर व्यंजन बाराखड़ी दिखा कर वर्णों को जोड़ - जोड़ कर पढ़ना सिखाया जाता है |
ध्वनिसाम्य विधि -   इसमें वर्णों और शब्दों की ध्वनि पर विशेष बल दिया जाता है एक सी ध्वनि  वाले शब्दों को एक साथ पढ़ाया जाता है | जैसे – काका,पापा,नाना,नानी,नीली,पीली आदि इस विधि में ध्वनि की साम्यता पर जोर दिया जाता है ना कि अर्थबोध पर |
देखो और कहो विधि - इस विधि में अक्षरों के बोध के स्थान पर शब्द बोध कराया जाता है| चित्र देखकर बालक को स्वयं ही उस शब्द का ध्यान आ जाता है बालक उसको देखकर समझकर बोलता है जो चित्र बालक के परिचय की परिधि में हो उन्ही वस्तुओं के चित्र तैयार किए जाते हैं प्रायः चित्र के नीचे वस्तु का नाम लिखा जाता है चित्र से शब्द, शब्द से वर्ण, को सिखाना |
वाक्य विधि - भाषा की इकाई वाक्य है इस वाक्य से शिक्षण प्रारंभ किया जाता है लिखने तथा पढ़ने से पूर्व बालक पूर्ण वाक्य सुनता है और बोलता है बालक वाक्य के स्वरूप को दो प्रकार से सीखता है चार्ट का प्रयोग करके एवं अध्यापक के अनुकरण द्वारा |
         इस विधि के आरंभ में शिक्षक एक छोटा वाक्य लिखकर उससे संबंधित चित्र बनाकर पूरे वाक्य को पढ़ना सीखना, बाद में वाक्य से शब्द, शब्द से वर्ण बनाने का कार्य होता है |
 कहानी विधि – प्रायः कहानी में बालक अधिक रुचि लेते हैं शिक्षक की सहायता से कहानी का विस्तार किया जा सकता है कई चित्रों को मिलाकर चित्र से संबंधित वाक्य उसके नीचे लिखकर चार्ट तैयार किया जा सकता है |अध्यापक चित्र दिखा कर बोलता जाता है और छात्र अनुकरण करके वाक्य का उच्चारण करता जाता है
 मिश्रित विधि - ऊपर लिखित विधियों में से कोई एक या दो विधि पूरी तरह सफल नहीं हो सकती क्योंकि हर विधि में कोई ना कोई कमी है अतः सभी में जहां से जो भी अच्छी बातें लगी उसे सही करके इसमें प्रयोग लेना चाहिए चित्रों को दिखाकर बालक से मौखिक वार्तालाप करना चाहिए चित्र के लिए वस्तुओं के नाम लिखें स्वयं पढ़े,पढ़वाये,वाक्यों को पूरा पढवाने में परिचित शब्दों का प्रयोग करें |
गहन अध्ययन  और व्यापक अध्ययन
हिंदी साहित्य के विशाल विषय वस्तु को अध्ययन करने के लिए पढ़ने की आवश्यकता होती है शिक्षण व विषय वस्तु की सरलता के आधार पर हम अध्ययन को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-
  • गहन अध्ययन  
  • व्यापक अध्ययन 
गहन अध्ययन - गहन अध्ययन में छात्र अथवा व्यक्ति पाठ्यवस्तु के प्रत्येक पाठक का ध्यान पूर्वक तथा गंभीरता पूर्वक अध्ययन करता है, वह उसके प्रत्येक भाव, विचार तथा शब्द पर अपना ध्यान केंद्रित करता है, इससे उसके शब्द भंडार में वृद्धि होती है वह उसके शाब्दिक अर्थ के साथ- साथ भावार्थ को भी समझता है |
 व्यापक अध्ययन - व्यापक या विस्तृत अध्ययन का उद्देश्य विद्यार्थियों को समझ कर पढ़ने में तीव्रता उत्पन्न करना है जिससे वह भावी जीवन में साहित्य की पुस्तकें सफलता पूर्वक पढ़ सके तथा समझ सके व्यापक अध्ययन ही द्रुत पठन कहलाता है इस अध्ययन में छात्र वस्तु को द्रुत गति से पढ़कर उसके भाव को समझता चलता है |
सस्वर वाचन - सस्वर वाचन वह है जिसमें स्वर सहित ओष्ठ हिलाते हुए वाचन किया जाता है और इससे स्वयं के साथ ही दूसरे को भी लाभ होता है प्रायः दैनिक और सामाजिक जीवन में व्यवहार कुशलता के लिए भाषा और चर्चा की आवश्यकता होती है जिसमें सस्वर वाचन अत्यंत सहयोगी होता है जो शुद्ध उच्चारण भावानुकूल उतार-चढ़ाव के साथ किया जाता है |
 वाचन को प्रायः दो भागों में बांटा जा सकता है  -
  • सामूहिक वचन और
  • एकल वचन
 वाचन की विधियां – विधार्थियों में अच्छे पठन की दक्षता विकसित करने की लिए निम्नांकित पठन शिक्षण की विधियाँ उपयोग में लाई जा सकती है -
  • स्वर उच्चारण विधि 
  • अक्षर बोध विधि 
  • वर्णन विधि 
  • अनुकरण विधि 
  • साहचर्य विधि |
स्वरोच्चारण विधि -  यही सबसे प्राचीन विधि है इसमें अध्यापक एक – एक वर्ण को श्यामपट्ट पर  लिखकर उसका उच्चारण कराता जाता है| छात्र वर्ण को देखते हैं और उसका उच्चारण करते हैं | इससे बालक को हिंदी वर्णमाला के हर वर्ण का ज्ञान हो जाता है और ध्वनियो के शुद्ध उच्चारण की पहचान हो जाती है |
 अक्षर बोध विधि  - इसमें बालक को वर्णमाला के अक्षरों को जोड़कर शब्द बनाना सिखाया जाता है फिर उसका अभ्यास भी कराया जाता है इससे मात्राओं का भी ज्ञान हो जाता है| इस बिधि में पहले स्वर फिर व्यंजन सिखाए जाते हैं वर्णो की पहचान कराने के पश्चात मात्राओं और शब्दों को पढ़ना सिखाया जाता है वर्णों का ज्ञान कराने के लिए  वर्ण से बनने वाले शब्द का चित्र भी दिखाया जाता है जैसे आ से अनार|
 वर्णन विधि - इसको देखो और कहो विधि भी कहते हैं |इस विधि में शब्द से संबंधित वस्तु या चित्र दिखाकर पहले शब्द का ज्ञान कराया जाता है चित्र के नीचे वस्तु का नाम होता है चित्र  परिचित होने के कारण बच्चे आसानी से शब्द से साहचर्य स्थापित कर लेते हैं |अध्यापक का अनुकरण करते हुए बच्चे शब्द का उच्चारण करते हैं फिर शब्द के प्रारम्भिक वर्णन व वर्णों की पहचान करते हैं|कई बार देखने सुनने और बोलने से वर्णों के चित्र मष्तिक में  अंकित हो जाते है| 
अनुकरण विधि-  भाषा अनुकरण से ही सीखी जाती है इस विधि में बालक अध्यापक का अनुकरण करके शब्दों तथा वर्णों का उच्चारण करना सीखते हैं इसमें अध्यापक श्यामपट्ट पर एक शब्द या वर्ण लिखता है और बोलता है साथ ही वालको से उच्चारण करवाता है , धीरे-धीरे व स्वतंत्र रूप से वर्ण व शब्दों को पहचानने लगता है तथा वाचन करता है यह विधि हिंदी के लिए थोड़ा कम उपयोगी है |
 साहचर्य विधि -  इस विधि के प्रणेता मैडम मांटेसरी है इस विधि में परिचित चित्रों के साथ साथ उनके नाम भी होते हैं वैसे ही नामों के कार्ड अलग से भी होते हैं बालक उन कार्डो को आपस में मिला मिला कर वाचन करना सीखना है |
मौन वाचन - जब हम लिपिबद्ध किए गए विचार तथा सामग्री को मन में पढ़ते हैं, तो उसे मौन वाचन कहा जाता है | मौन वाचन करते समय पढ़ने वाला किसी भी प्रकार की कोइ आवाज नहीं निकलता अथवा बिना आवाज उच्चारण के पढ़ने को ही मौन वाचन कहा जाता है इसमें अंग संचालन की आवश्यकता नहीं होती है सिर्फ वाचक अपनी आंखों को लिखित सामग्री पर फिराता रहता है |
 मौन वाचन के उद्देश्य  - मौन वाचन शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित है -
  • पढ़ने की क्षमता निर्माण करना |
  • स्वाध्याय में रूचि बढ़ाना |
  • अवकाश का सदुपयोग करना सिखाना |
  • निरीक्षा शक्ति का विकास करना |
  • स्वयं शिक्षण की आदत डालना |
  • मानसिक शक्तियों का विकास करना |

मौन वाचन से बालकों में स्वावलंबन बढ़ जाता है | इसमें बिना किसी की सहायता से बालक अध्ययन कर सकता है, उसी वक्त भाव का अर्थ ग्रहण करता रहता है | स्वावलंबन यह अत्यंत ही महान और आवश्यक गुण है, इस गुण को आत्मसात करने के लिए मौन वाचन उपयुक्त है छात्रों में स्वाध्याय की जिज्ञासा निर्माण करने का मौन वाचन का एक प्रमुख साधन है | मौन वाचन से विचारों को तथा भाव को ग्रहण करने की शक्ति का विकास होता है इससे ग्रहण आत्मक शक्ति विकसित होती है सस्वारवाचन  में अपने ध्यान को विभिन्न क्रियाओं पर केंद्रित किया जाता है इसलिए मूल भाव को समझने में जटिलता का अनुभव होता है | मौन वाचन में केवल अपनी दृष्टि और ध्यान को पाठ्यवस्तु में केन्द्रित किया जाता है | इससे भाव ग्रहण में सरलता होती है |
मौन वाचन को स्पष्ट करते हुए हिंदी साहित्य के विद्वान आर0 जी0 कुशवाहा कहते है कि –शिक्षक द्वारा शिक्षार्थी को पढाई गयी विषय वस्तु को जब शिक्षार्थी पुनःसभी ज्ञान इंद्रियों को एकाग्र करके शान्ति पूर्वक  विषय वस्तु को पढता है तो वह ज्ञान स्थाई होता है |
लेखन कौशल -  जब हम जब हम अपने विचारों,भावो, को लिखकर व्यक्त करते हैं | तो उसे लेखन कौशल या लिखित अभिव्यक्ति कहते हैं | लेखन के अंतर्गत सुडौल एवं अच्छे वर्णों में लिखना भी सम्मिलित है | साधारणतया शब्दों द्वारा लिखित भाव प्रकाशन ही लिखित अभिव्यक्ति कहलाता है | लिखित अभिव्यक्ति के अनेक रूप हैं, जिसमें पत्र लेखन,निबंध लेखन,प्रार्थना पत्र लेखन,आत्मकथा लेखन, जीवन चरित्र लेखन, कहानी लेखन, संवाद लेखन आदि होते हैं |
श्रीधर मुखर्जी के अनुसार -  संसार में मनुष्य दो प्रकार से ख्याति प्राप्त करता है एक वक्ता दूसरा लेखक,| वक्ता तो प्रायः अपने जीवनकाल में ही विशेष पूज्य  रहता है, अर्थात उसकी ख्याति जीवनकाल में ही होती है उसके बाद लोग उसे धीरे-धीरे भूलने लगते हैं, परंतु लेखक का नाम अमर रहता है उसके पश्चात भी लोग उसकी रचनाओं का अध्ययन करते हैं और उसके भाव एवं विचारों से लाभ उठाते हैं,|
डॉ0 रामगोपाल कुशवाहा के अनुसार - एक प्रसिद्ध वक्ता जब अपने भावों एवं विचारों को लिपिबद्ध करता है, तो वह लेखन कहलाता है,|
लेखन कौशल की विधियां - लेखन कौशल की महत्वपूर्ण विधियां निम्नलिखित है -
  • रूपरेखा अनुकरण विधि
  • अनुकरण विधि
  • मांटेसरी विधि 
  • जेकटाट प्रणाली 
  • पेस्टालॉजी की रचनात्मक प्रणाली
  • मनोवैज्ञानिक विधि 
रूपरेखा अनुकरण विधि - इस विधि में शिक्षक स्लेट,कापी या श्यामपट्ट पर चाक या पेंसिल से वर्ण  लिख देता है | छात्रों उन लिखे वर्णो या निशानों पर पेंसिल या चाक फेरता है  जिससे शब्द या वाक्य उभर कर आ जाते हैं इस प्रकार बालक वर्णों का लिखना सीख जाता है |
 अनुकरण विधि  - शिक्षक श्यामपट्ट या कॉपी पर कुछ शब्द या वर्ण लिख देता है बालक लिखे गए वर्ण  या शब्दों को अनुकरण करके लिखता है |
 मांटेसरी विधि  - इसमें सबसे पहले गत्ते या लकड़ी के बने अक्षरों पर हाथ फेरने को कहा जाता है | जब उनकी उंगुलियां सध जाती हैं तब स्वतंत्र रूप से वर्ड लिखने को कहा जाता है तब उन्हें कटे अक्षरों के बीच चला कर लिखना सिखाया जाता है नीचे कागज़ रख कर खाली कटे हुए स्थानों पर पेंसिल चलाने के नीचे के कागज पर वर्ण बन जाते हैं और वर्ण लिखने के लिए हाथ के परिचालन का अभ्यास भी बालक को हो जाता है |
जेकटाट प्रणाली - इस प्रणाली में बालकों के समक्ष पूरा वाक्य रखा जाता है बालक अनुकरण के आधार पर एक-एक शब्द को लिखते हैं और मूल वाक्य से मिलाकर उसकी असुद्धियो का पता लगाकर उसे दूर करते हैं अंत में अध्यापक बालको की स्मृति के आधार पर संपूर्ण वाक्य लिखने के लिए कहता है छोटे बालकों के लिए यह विधि जटिन तथा कठिन होती है |
पेस्टालाजी की रचनात्मक प्रणाली  - पेस्टालाजी की यह प्रणाली सरल से कठिन सूत्र पर आधारित है, इस प्रणाली में पहले अक्षर लिखना सिखाया जाता है सबसे पहले अक्षरों की आकृति को  टुकड़ों में तोड़ लिया जाता है फिर टुकड़ों के योग से अक्षर की रचना कराई जाती है |
 मनोवैज्ञानिक विधि - लिखना सिखाने के लिए मनोवैज्ञानिक प्रणाली का विशेष महत्व है मनोवैज्ञानिक प्रणाली में वर्णमाला के अक्षर तथा शब्द आदि सिखाने की अपेक्षा पूर्ण वाक्य बोलना सिखाया जाए, बालक जब पूर्ण वाक्य बोलने लगे तथा उसकी कर्मेन्द्रियाँ तथा ज्ञानेन्द्रियाँ मजबूत हो जाए तो उन्हें पढ़ने के लिए तैयार करना चाहिए |
 लेखन की ध्यान देने योग्य बातें -  लिखना सिखाने के लिए शिक्षक को निम्नलिखित बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए -
  • लिखना सिखाने के लिए बालक को मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए, साथ ही यह भी देखना आवश्यक एक ही उसकी उंगलियां तथा हाथ की मांसपेशियां कलम पकड़ने योग्य हैं या नहीं |
  • लिखने के लिए समय तथा उपयुक्त वातावरण का भी ध्यान रखना चाहिए, कक्षा का वातावरण सुरुचि पूर्ण हो|
  • लिखना सीखने को तैयार होने पर उसे विधिवत रूप से वर्णमाला के सभी अक्षरों को लिखना सिखाना चाहिए |
  • इसके पश्चात वाक्यों का लिखना सिखाना चाहिए जब बालक वर्णों की रचना सीख जाए तब वर्ण मिलाकर शब्द बनाना और उनके पश्चात वाक्य लिखना सिखाना चाहिए बालकों को सुंदर सुडौल तथा स्पष्ट रूप से लिखने का अभ्यास कराना चाहिए |
  • जब बालक को देखकर और सुनकर सुन्दर लेख द्वारा शब्द व वाक्य लिखने का अभ्यास हो जाए तो उन्हें अपने भावों और विचारों को तार्किक क्रम तथा व्याकरण सम्मत भाषा में व्यक्त करने का अभ्यास कराना चाहिए |
  • लेखन करते समय बालकों के बैठने का उचित ढंग हो | रीड की हड्डी सीधी रहे झुक कर लिखने की आदत ना डाली जाए, कुर्सी पर बैठते समय बालक के पैर जमीन पर सीधे रहे, घुटने 90 अंश के कोण पर हो |
  • लिखने की कॉपी आंखों से एक फुट की दूरी पर हो |
  • कलम पकड़ने का ढंग ठीक होना चाहिए, कलम अंगूठे व मध्य उंगली के बीच में हो तथा पहले उंगली कलम के ऊपर रहे कलम को निब या प्वाइंट से एक इंच ऊपर से पकड़ना चाहिए |
  • हिंदी भाषा लिखने का क्रम बाएं से दाएं ओर होना चाहिए |
लेखन कौशल की विशेषताएं  
  • शब्द से शब्द के बीच एवं पंक्ति से पंक्ति के बीच सामान्य दूरी होनी चाहिए |
  • पंक्ति सीधी व स्पष्ट हो |
  • लिखी हुई पाठ्यवस्तु स्पष्ट हो जो आसानी से पढ़ी जा सके |
  • सभी अक्षर सुंदर और समानुपात में हो |
  • लेखन कक्षा के अनुरूप हो |
  • लेखन में व्याकरण आत्मक त्रुटियां नहीं होनी चाहिए |

शब्द
 भाषा का स्वरूप वाक्य शब्द तथा वर्ण से निर्धारित होता है | वर्ण भाषा की सूक्ष्मतम इकाई होती है | स्वर तथा व्यंजनों से युक्त हिंदी भाषा संसार की एक वैज्ञानिक एवं समृद्ध भाषा है | वाक्य की न्यूनतम इकाई शब्द है |
भोलानाथ तिवारी के अनुसार - शब्द अर्थ के स्तर पर भाषा की लघुतम स्वतंत्र इकाई है |
महर्षि पतंजलि के अनुसार - लोक व्यवहार में अर्थ की प्रतीति कराने वाली ध्वनि शब्द है |
डां0 रामगोपाल कुशवाहा के अनुसार - जन समुदाय में प्रयुक्त सार्थक वर्णों के अर्थ की प्रतीत कराने वाली ध्वनियों को शब्द कहते हैं |
प्रत्येक भाषा का अपना शब्द समूह होता है, इन शब्दों का प्रयोग भाषा के बोलने व लिखने में किया जाता है सामान्य या किसी भी भाषा में चार प्रकार के शब्द होते हैं –
  • तत्सम शब्द 
  • तद्भव शब्द 
  • देशज शब्द
  • विदेशी शब्द
 तत्सम शब्द - हिंदी में जो शब्द संस्कृत से त्यों के त्यों ग्रहण कर लिए गए हैं तथा इनमें कोई ध्वनि परिवर्तन नहीं हुआ है तत्सम शब्द कहलाते हैं |
 तद्भव शब्द - तद्भव शब्द का शाब्दिक अर्थ है –तत +भव अर्थात संस्कृत से उत्पन्न ,हिंदी में प्रयुक्त वह शब्दावली जो अनेक ध्वनि परिवर्तन से गुजरती हुई हिंदी में आई है वह तद्भव शब्द है |
देशज शब्द –ध्वन्यात्मक अनुकरण पर गढ़े हुए वे शब्द जिनकी उत्पत्ति किसी  तत्सम शब्द से नहीं होती वह देशज शब्द होते है |
 विदेशी शब्द  - दूसरी भाषाओं से आए हुए शब्द विदेशी शब्द कहे जाते हैं हिंदी में विदेशी शब्द दो प्रकार के हैं मुस्लिम शासन के प्रभाव से आए हुए शब्द और अरबी, फारसी शब्द तथा ब्रिटिश शासन के प्रभाव से आए हुए शब्द अंग्रेजी शब्द |
 वाक्य
 वक्त के कथन को पूर्णत: व्यक्त करने वाले सार्थक शब्द समूह को वाक्य कहते हैं |
     वाक्य में पूर्णता तभी आती है जब पद सुनिश्चित क्रम में हो और इन पदों में पारस्परिक अन्वय  (समन्वय) विद्यमान हो वाक्य की शुद्धता भी पदक्रम एवं अन्वय से संबंधित है |
वाक्य के भेद – 
रचना की दृष्टि से -संरचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के होते हैं -
  • सरल वाक्य 
  • संयुक्त वाक्य 
  • मिश्रित वाक्य
 सरल वाक्य - जिसमें वाक्य में एक क्रियापद एवं एक कर्ता होता है उसे सरल या साधारण वक्त कहते हैं | जैसे - राम खाना खाता है |
संयुक्त वाक्य - जिस वाक्य में साधारण या मिश्रित वाक्यों का मेल संयोजक अव्ययों द्वारा होता है उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं | जैसे - राम घर गया और खाना खा कर सो गया |
 मिश्रित वाक्य - इसमें एक प्रधान उपवाक्य होता है और एक आश्रित उपवाक्य होता है | जैसे - राम ने कहा कि मैं कल नहीं आ सकूंगा |
अर्थ की द्रष्टि से वाक्य भेद  - अर्थ की द्रष्टि से वाक्य भेद  आठ प्रकार के होते हैं –
  • बिधानार्थक 
  • निषेधात्मक 
  • आज्ञावाचक 
  • प्रश्नवाचक 
  • विस्मयवाचक
  • संदेह्वाचक 
  • इच्छावाचक 
  • संकेतवाचक
   
 बिधानार्थक - जिसमें किसी बात के होने का बोध हो | जैसे - मोहन घर गया |
 निषेधात्मक - जिसमें किसी बात के ना होने का बोध हो | जैसे - सीता ने गीता नहीं गाया |
आज्ञा वाचक - जिसमें आज्ञा दी गई हो | जैसे - यहां बैठो |
 प्रश्नवाचक - जिसमें कोई प्रश्न किया गया हो | जैसे - तुम कहां रहते हो |
 विस्मयवाचक - जिसमें किसी भाव का बोध हो | जैसे - हाय वह मर गया |
 संदेह वाचक - जिसमेंसंदेह या  संभावना व्यक्त की गई हो | जैसे - वह आ गया होगा |
 इच्छा वाचक - जिसमें कोई इच्छा कामना व्यक्त की जाए | जैसे - ईश्वर तुम्हारा भला करे |
 संकेतवाचक - जहां एक वाक्य दूसरे वाक्य के होने पर निर्भर हो | यथा - यदि गर्मी पड़ती तो पानी बरसता |
इन वाक्यों का पारस्परिक रूपांतरण बिना अर्थ बदले किया जा सकता है साधारण वाक्यों को मिलाकर एक साधारण संयुक्त या मिश्रित वाक्य बनाया जा सकता है इस प्रक्रिया को वाक्य संश्लेषण कहते हैं इसी प्रकार बिना अर्थ बदले एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में रूपांतरित किया जा सकता है |
 पैराग्राफपैराग्राफ, मूल पाठ को बड़े बड़े हिस्सों को  तोड़ने में सहायक होते हैं और पाठक के लिए सामग्री को पढ़ने में सरल बना देते हैं । वे पाठक को, आपके मुख्य तर्क को समझ कर, मुख्य विचार या लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए निर्देशित करते हैं |
जब एक बार आपको यह स्पष्ट हो जाये कि आप अपने पैराग्राफ में किस मुद्दे को उठाना चाहते हैं, आप अपने विचारों को संगठित करने के लिए उन्हें एक (किताब) नोट पैड या वर्ड डॉक्यूमेंट में लिखना शुरू कर सकते हैं। अभी पूर्ण वाक्य लिखने की आवश्यकता नहीं है, केवल कुछ मुख्य शब्द और मुहावरे लिख डालिए। जब आप सब कुछ लिखा हुआ देखेंगे, तब आपको यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन से बिन्दुओं का समावेश पैराग्राफ में करना अनिवार्य है और कौन से बिन्दु निरर्थक हैं।
इस समय, आपको यह एहसास हो सकता है कि आपके ज्ञान में कुछ कमी है और अपने तर्क के समर्थन के लिए आपको कुछ और तथ्यों और आंकड़ों को जानना अनिवार्य होगा।
इस विषयवस्तु को अभी ही कर लेना अच्छा होगा, ताकि आपको समस्त सम्बद्ध जानकारी, लिखते समय, आसानी से उपलब्ध हो सके।
अब जबकि आपके विचार, तथ्य और आंकड़े आपके सम्मुख स्पष्ट रूप से रखे हुये हैं, आप यह सोचना शुरू कर सकते हैं कि आप अपने पैराग्राफ की संरचना कैसे करना चाहेंगे। जिन मुद्दों को भी आप उठाना चाहें उनका विचार कर लीजिये और उन्हें एक तार्किक क्रम में रखने का प्रयास करिए इससे आपका पैराग्राफ सुसंगत एवं सुपाठ्य हो जाएगा।
संभव है कि नवीन क्रम तिथिवार हो, आप सबसे प्रमुख जानकारी सबसे पहले लिखना चाहें या शायद आप केवल पैराग्राफ को सरल एवं पढ़ने में रुचिकर बनाना चाहें यह सब विषय और आपकी लेखन शैली, जो आप अपनाना चाहें, पर निर्भर करेगा।
जब एक बार आपने यह निर्णय कर लिया हो कि सब चीज़ें कहाँ जाएंगी, आप सभी बिन्दुओं को इस नई संरचना के अनुसार पुनः लिख सकते है इससे लेखन प्रक्रिया बहुत तेज़ और सीधी सादी हो जाएगी।
आपके पैराग्राफ का पहला वाक्य विषय संबंधी वाक्य होना चाहिए। विषय संबंधी वाक्य वह परिचयात्मक वाक्य होता है जिसमें आने वाले पैराग्राफ के मुख्य विचार या प्रसंग की चर्चा की जाती है। इसमें विषय से संबन्धित मुख्य और सम्बद्ध मुद्दा जो आप उठाना चाहते हैं, होना चाहिए, अतः इसमें पूरे पैराग्राफ का संक्षिप्तीकरण होना चाहिए।
अन्य सभी वाक्यों को विषय वाक्य का समर्थन करता हुआ होना चाहिए और उनमें आगे की जानकारी तथा मुद्दे से संबन्धित तर्क या उठाए जाने वाले विचार दिये जाने चाहिए। यदि आपके द्वारा लिखा गया कोई वाक्य सीधे सीधे विषय वाक्य से सम्बद्ध नहीं होता है तो, उसे पैराग्राफ में सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिए।
अधिक अनुभवी लेखक विषय वाक्य को पैराग्राफ में किसी भी स्थान पर रख सकते हैं; यह आवश्यक नहीं है कि वह पहला वाक्य ही हो। तथापि, नौसिखिया लेखकों के लिए या जिन्हें पैराग्राफ लिखना अभी सरल नहीं लगता है, उनके लिए, विषय वाक्य को पहले लिखना ही उचित होगा, क्योंकि इससे उन्हें पूरे पैराग्राफ में निर्देशन प्राप्त होता रहेगा।
आपके विषय वाक्य को न तो बहुत व्यापक होना चाहिए और न ही अति संकीर्ण। यदि आपका विषय वाक्य बहुत व्यापक होगा तब आप विचार पर पैराग्राफ में पूरी चर्चा नहीं कर पाएंगे। यदि वह बहुत संकीर्ण होगा, तब आपके पास चर्चा करने के लिए बहुत कुछ होगा भी नहीं।
जब एक बार आपने विषय वाक्य लिख लिया है तथा आप उससे संतुष्ट हैं, आप शेष पैराग्राफ में जानकारी रख सकते हैं। इस स्थान पर आपके पहले से लिखे गए बढ़िया तरीके से संरचित, विस्तृत नोट्स काम आएंगे। सुनिश्चित करिए कि आपका पैराग्राफ सुसंगत है, अर्थात पढ़ने में सहज और समझ आने लायक है, प्रत्येक वाक्य अगले वाक्य से जुड़ा हुआ है और सम्पूर्णता में एक अच्छा प्रवाह भी है। यह पाने के लिए, प्रयास करिए कि आप स्पष्ट एवं ऐसे सरल वाक्य लिखें जो बिलकुल वही प्रदर्शित करें जो आप कहना चाहते हैं।
प्रत्येक वाक्य को संक्रमण शब्द की सहायता से अगले वाक्य से ऐसे जोड़िए कि वे पुल का काम करें। संक्रमण शब्द आपको समानता एवं विषमता दिखाने में, क्रम दिखाने में, कारण और प्रभाव दिखाने में, मुख्य विचारों का महत्त्व दिखाने में और एक विचार से दूसरे विचार तक सहज रूप से जाने में सहायता कर सकते हैं। साथ ही साथ”, “वास्तव मेंतथा इसके साथ हीकुछ संक्रमण शब्द हैं। आप काल संक्रमण का प्रयोग भी कर सकते हैं, जैसे कि सबसे पहले”, “दूसरे”, और तीसरे 
समर्थन करने वाले वाक्य आपके पैराग्राफ का मांसल भाग होते हैं, अतः आपको इनमें ऐसे सभी संभव साक्ष्य भरने चाहिए जिनसे आपके विषय वाक्य को यथासंभव समर्थन मिले। यह विषय पर निर्भर करता है कि आप तथ्य, आंकड़े, संख्याएँ तथा उदाहरण देंगे या कहानियाँ, किस्से, तथा उद्धरण रखेंगे। जो भी प्रसंगोचित हो वह सभी उचित है।
जहां तक लंबाई का प्रश्न है, आमतौर से तीन से पाँच वाक्यों में आपका मुख्य मुद्दा सम्पूर्ण हो जाना चाहिए जिससे कि आपके विषय वाक्य को समुचित समर्थन प्राप्त हो, परंतु इसमें विषय के आधार पर और आपके द्वारा लिखे जा रहे लेख के आधार पर बहुत परिवर्तन संभव है। पैराग्राफ की कोई निर्धारित लंबाई नहीं है। उसे इतना लंबा होने की आवश्यकता है कि उसमें मुख्य विचार सम्पूर्ण रूप से सम्मिलित हो सके |
पैराग्राफ का समापन वाक्य ऐसा होना चाहिए जो सबकुछ एकसाथ संगठित कर सके। एक अच्छा समापन वाक्य आपके विषय वाक्य में दिये गए विचार को सुदृढ़ करेगा, परंतु अब उसमें सभी साक्ष्यों और तर्कों का समर्थन भी संलग्न होता है। समापन वाक्य पढ़ने के बाद पाठक को सम्पूर्ण पैराग्राफ की सत्यता और प्रासंगिकता पर कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
विषय वाक्य को ही अलग शब्दों में मत लिख दीजिये। आपके समापन वाक्य में पहले आए हुये तर्कों की स्वीकृति होनी चाहिए और उससे पाठकों को चर्चा की प्रासंगिकता की भी याद दिलाई जानी चाहिए।
उदाहरण के लिए, “कनाडा रहने के लिए अच्छी जगह क्यों है?” से संबन्धित पैराग्राफ में समापन वाक्य ऐसा कुछ होना चाहिए ऊपर दिये गए समस्त साक्ष्यों, जैसे कनाडा की श्रेष्ठ स्वास्थ्य सेवाएँ, उसकी उच्च श्रेणी की शिक्षा प्रणाली, और उसके साफ़, सुरक्षित शहरों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कनाडा वास्तव में रहने के लिए अच्छी जगह है।
जान लीजिये कि कब आपको नया पैराग्राफ शुरू करना है: - कभी कभी यह बता पाना कठिन होता है कि एक पैराग्राफ कहाँ समाप्त हो और दूसरा कहाँ शुरू। सौभाग्य से, अनुपालन करने के लिए अनेक दिशा निर्देश उपलब्ध हैं जिनसे नए पैराग्राफ को शुरू करने के निर्णय सरल हो जाते हैं। बुनियादी बात यह है कि हर बार जब नये विचार की चर्चा की जाये तब नया पैराग्राफ शुरू किया जाये। पैराग्राफ में कभी भी एक से अधिक मुख्य विचार नहीं होना चाहिए। यदि किसी विचार में अनेक बिन्दु या आयाम हों, तब विचार के प्रत्येक आयाम को अपना एक पैराग्राफ दिया जाना चाहिए। 
जब आप दो बिदुओं की तुलना कर रहे होते हैं या किसी विवाद के सभी पक्षों को प्रस्तुत कर रहे होते हैं तब भी नया पैराग्राफ शुरू किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आपका विषय है क्या प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को कम वेतन मिलना चाहिए?” तब एक पैराग्राफ में प्रशासनिक अधिकारियों को कम वेतन दिये जाने के समर्थन में दिये जाने वाले तर्क दिये जाने चाहिए जबकि दूसरे पैराग्राफ में उसके विरोध में तर्क दिये जाने चाहिए।
पैराग्राफ से लेखों को समझना सरल हो जाता है और पाठकों को पढे जाने वाले विचारों के पाचन के लिए दो विचारों के बीच में ब्रेकमिल जाता है। यदि आपको लगता है कि आपके द्वारा लिखा जाने वाला पैराग्राफ अत्यंत जटिल होता जा रहा है या उसमें अनेक जटिल बिन्दु सम्मिलित हो गए हैं, तब आप उनको अलग अलग पैराग्राफ में बांटने के संबंध में विचार कर सकते हैं।
जब आप कोई लेख लिख रहे हों, तब प्रस्तावना और उपसंहार में एक एक पैराग्राफ दिया जाना चाहिए। परिचयात्मक पैराग्राफ में लेख का उद्देश्य परिभाषित होना चाहिए तथा यह भी, कि इससे क्या प्राप्त होने की आशा है, और साथ ही चर्चित विचारों एवं मुद्दों की संक्षिप्त रूपरेखा भी दी जानी चाहिए। उपसंहार वाले पैराग्राफ में लेख में दी गई समस्त जानकारी तथा तर्कों, जिन्हें प्रस्तुत या/तथा सिद्ध किया गया हो, का सारांश स्पष्ट शब्दों में दिया जाता है। यहाँ पर उस नए विचार का परिचय भी दिया जा सकता है, जो लेख को पढ़ने के बाद पाठक के मन में उठ रहा हो।[२]
यदि आप कल्पना से कुछ लिख रहे हैं, तो आपको नए वक्ता को दिखाने के लिए नया पैराग्राफ शुरू करने की आवश्यकता है।
पढ़ते समय देखिये कि पैराग्राफ कैसे विभाजित किए गए हैं। यदि आप अनुभव से यह सीखते हैं कि पैराग्राफ क्या हैं, तब आप केवल अपने महसूस कर पाने के आधार पर ही लेखन का उचित विभाजन कर पाएंगे।
पैराग्राफ की लंबाई के संबंध में कोई स्थापित नियम नहीं है। इसके स्थान पर यह सुनिश्चित करिए कि प्राकृतिक ब्रेक हों। प्रत्येक पैराग्राफ में एक मुख्य विचार होना चाहिए और लेखन ऐसा, जो उसका समर्थन करे।
सुपाठ्यता – 
“व्याकणात्मक त्रुटि रहित पठन एवं स्पष्ट उच्चरणात्मक पठन ही सुपाठ्यता है”
डा0 रामगोपाल कुशवाहा के अनुसार - “विषय वस्तु के अनुसार स्पष्ट आवाज और आरोह – अवरोह के साथ पठन ही सुपाठ्यता है |”
            पाठक  अगर एक अखबार या पत्रिका या एक किताब के पन्नों के स्तंभों को तनाव या कठिनाई के बिना कई मिनटों तक पढ़ा जा सकता है, तो हम कह सकते हैं कि पाठक की पठनीयता अच्छी है। इस बात से दृश्य आराम की गुणवत्ता का संकेत मिलता है - पाठ की लंबी विस्तृत समझ में यह एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है, लेकिन इसके विपरीत, टेलीफोन निर्देशिका या हवाई जहाज की समय सारणी जैसी चीजों के लिए यह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, सुपाठ्यता 'प्रत्यक्ष ज्ञान से संबंधित है' और पठनीयता 'समझ को दर्शाता है | पाठक का उद्देश्य दोनों में उत्कृष्टता प्राप्त करना होता है।
"चुना हुआ पाठ स्पष्ट होना चाहिए मतलब, यह प्रयास के बिना पढ़ा जाना चाहिए |हालांकि, एक स्पष्ट पाठ भी कमजोर लेखन और क्रम स्थान के चलते अपठनीय हो सकता है, ठीक उसी तरह स्पष्ट पाठ अच्छे लेखन के द्वारा अधिक पठनीय बनाए जा सकते हैं।
स्पष्टता को आमतौर पर पढ़ने की गति के माध्यम से और प्रभावशीलता की जांच के लिए समझ के स्तर के साथ (मतलब, तेज या लापरवाह दंग का पाठ नहीं), मापा जाता है। उदाहरण के लिएमाइल्स टिंकर, जिसने, 1930 से 1960 के दशक में कई अध्ययनों को प्रकाशित कराया, तेज गति से पढ़ने के परीक्षण का उपयोग किया जिसमें ऐसे प्रतिभागियों की जरूरत थी जो प्रभावशीलता के फिल्टर के रूप में बेतुके शब्दों का उपयोग न करें |
शब्द दूरी - शब्द से शब्द की दूरी से तात्पर्य ऐसे लेखन से है जो प्रत्येक शब्द को अलग अलग व् स्पष्ट लिखा जाए, लिखी  गई विषय वस्तु के प्रत्येक शब्द की दूरी सामान्य होनी चाहिए और वह प्रत्येक शब्द स्पष्ट व व्याकरण आत्मा त्रुटि रहित होने चाहिए |

विराम चिन्ह की परिभाषा भेद और उदहारण-Viram Chinh In Hindi

विराम का अर्थ होता है विश्राम या रूकना। अथार्त वाक्य लिखते समय विराम को प्रकट करने के लिए लगाये जाने वाले चिन्ह को ही विराम चिन्ह कहते हैं।
वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्ट, अर्थवान हो जाती है। लिखित भाषा में इस ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं जिन्हें विराम-चिह्न कहा जाता है।
उदहारण के लिए :-
  • राम स्कूल जाता है।
  • मैंने खाना खा लिया है।
यदि विराम चिन्ह का वक्य में सही से प्रयोग न किया जाए तो वाक्य अर्थहीन और अस्पष्ट या फिर एक दूसरे के विपरीत हो जाता है।
उदहारण के लिए :
  • रोको, मत जाने दो। अब यहाँ पर न जाने दो की बात हो रही है।
  • रोको मत, जाने दो। और यहाँ पर जाने दो की बात हो रही है।

विराम चिन्ह के प्रकार -Types of Viram Chinh

विराम चिन्ह का नाम
विराम चिन्ह
  • पूर्ण विराम
  • अल्प विराम
,
  • उप विराम
:
  • अर्द्ध विराम
;
  • योजक चिन्ह
  • कोष्ठक चिन्ह
() {}[]
  • पदलोप चिन्ह
  • रेखांकन चिन्ह
_
  • आदेश चिन्ह
:-
  • विस्मयादिबोधक चिन्ह
!
  • प्रश्नवाचक चिन्ह
?
  • अवतरण या उदहारणचिन्ह
“…”
  • पुनरुक्ति सूचक चिन्ह
,,
  • दीर्घ उच्चारण चिन्ह
S
  • तुल्यता सूचक चिन्ह
=
  • विस्मरण चिन्ह या त्रुटिपूरक चिन्ह
^
  • निर्देशक चिन्ह

1. पूर्ण विराम-Full Stop () :

जब वाक्य खत्म हो जाता है तब वाक्य के अंत में पूर्ण विराम (।) लगाया जाता है।
उदहारण :
  • राम खाना खाता है
  • मोहन स्कूल जाता है
  • राम जा दोस्त मोहन है
  • मैंने अपना काम पूरा कर लिया

2. अल्प विराम-Comma (,)

जहाँ थोड़ी सी देर रुकना पड़े, वहाँ अल्प विराम चिन्ह का प्रयोग किया जाता हैं अथार्त एक से अधिक वस्तुओं को दर्शाने के लिए अल्प विराम चिन्ह (,) लगाया जाता है।
उदहारण :
  • राम, सीता, लक्षम और हनुमान ये सभी भगवान् के रूप में पूजे जाते हैं।
  • मैंने भारत में पहाड़, झरने, नदी, खेत, ईमारत आदि चीजें देखीं थी।

3. उप विराम-Colon (:) :

जब किसी शब्द को अलग दर्शाया जाता है तो वह पर उप विराम चिन्ह (:) लगाया जाता है अथार्त जहाँ पर किसी वस्तु या विषय के बारे में बताया जाए तो वहां पर उप विराम चिन्ह (:) का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण :
  • कृष्ण के अनेक नाम : मोहन, श्याम, मुरली, कान्हा।
  • उदहारण : राम खाना खाता है।
  • विज्ञान : वरदान या अभिशाप।

4. विस्मयादिबोधक चिन्ह-Interjection (!) :

विस्मयादिबोधक चिन्ह (!)का प्रयोग वाक्य में हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए किया जाता है अथार्त इसका प्रयोग अव्यय शब्द से पहले किया जाता है।
उदाहरण :
  • हाय !, आह !, छि !, अरे !, शाबाश !
  • हाय ! वह मार गया।
  • आह ! कितना सुहावना मौसम है।
  • वाह ! कितना सुंदर वृक्ष है।

5. अर्द्ध विराम-Semi Colon (;) :

पूर्ण विराम से कुछ कम, अल्पविराम से अधिक देर तक रुकने के लिए अर्ध विरामका प्रयोग किया जाता है अथार्त एक वाक्य या वाक्यांश के साथ दूसरे वाक्य या वाक्यांश का संबंध बताना हो तो वहाँ अर्द्ध विराम (;)का प्रयोग होता है।
उदाहरण :
  • सूर्यास्त हो गया; लालिमा का स्थान कालिमा ने ले लिया ।
  • कल रविवार हैछुट्टी का दिन हैआराम मिलेगा।
  • सूर्योदय हो गया; चिड़िया चहकने लगी और कमल खिल गए ।

6. प्रश्नवाचक चिन्ह-Question Mark (?) :

प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में प्रश्नसूचक चिन्ह’ (?) का प्रयोग किया जाता है अथार्त जब किसी वाक्य में सवाल पूछे जाने का भाव उत्पन्न हो तो उस वाक्य के अंत में प्रशनवाचक चिन्ह (?) का प्रयोग किया जाता है
उदहारण :
  • वह क्या खा रहा है?
  • राम बाजार से क्या लेकर आया था?
  • सीता के पिता का क्या नाम था?
  • शिव कौन थे?

7. योजक चिन्ह-Hyphen (–) :

दो शब्दों में परस्पर संबंध स्पष्ट करने के लिए तथा उन्हें जोड़कर लिखने के लिए योजक-चिह्न () का प्रयोग किया जाता है।
उदहारण :
  • वह रामसीता की मूर्ती है।
  • सुखदुःख जीवन में आते रहते हैं।
  • रातदिन परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है।
  • देश के जवानों ने तनमन-धन से देश की रक्षा के लिए प्रयत्न किया।

8. कोष्ठक चिन्ह-Bracket () :

वाक्य के बीच में आए शब्दों अथवा पदों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक का प्रयोग किया जाता है अथार्त कोष्ठक चिन्ह () का प्रयोग अर्थ को और अधिक स्पस्ट करने के लिए शब्द अथवा वाक्यांश को कोष्ठक के अन्दर लिखकर किया जाता है।
उदहारण :
  • अध्यापक (चिल्लाते हुए) " निकल जाओ कक्षा से।"
  • विश्वामित्र (क्रोध में काँपते हुए) ठहर जा।
  • धर्मराज (युधिष्ठिर) सत्य और धर्म के संरक्षक थे।

9. पदलोप चिन्ह-Omission (…) :

जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिह्न () का प्रयोग किया जाता है।
उदहारण :
  • राम ने मोहन को गली दी
  • मैं सामान उठा दूंगा पर
  • में घर अवश्य चलूँगा पर तुम्हारे साथ।

10. अवतरण या उदहारणचिन्ह-Inverted Comma ( “…” ) :

किसी की कही हुई बात को उसी तरह प्रकट करने के लिए अवतरण चिह्न () का प्रयोग किया जाता है।
उदहारण :
  • तुलसीदास ने सत्य कहा है ― पराधीन सपनेहु सुख नाहीं।
  • जयशंकर प्रसाद ने कहा है ― जीवन विश्र्व की सम्पत्ति है।
  • राम ने कहासत्य बोलना सबसे बड़ा धर्म है।

11. रेखांकन चिन्ह-Underline ( _ ) :

किसी भी वाक्य में महत्त्वपूर्ण शब्द, पद, वाक्य को रेखांकित करने के लिए रेखांकन चिन्ह (_)का प्रयोग किया जाता है।
उदहारण :
  • हरियाणा और उत्तर प्रदेश को यमुना नदी प्रथक करती है।
  • गोदान उपन्यास, प्रेमचंद द्वारा लिखित सर्वश्रेष्ठ कृति है।
  • कृष्ण ने बरगद के पेड़ के निचे उपदेश दिया था।

12. लाघव चिन्ह-Abbreviation Sign () :

किसी बड़े तथा प्रसिद्ध शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए उस शब्द का पहला अक्षर लिखकर उसके आगे शून्य () लगा देते हैं। यह शून्य ही लाघव-चिह्न कहलाता है।
उदहारण :
  • डॉंक़्टर के लिए डॉं
  • पंडित के लिए पं
  • इंजिनियर के लिए इंजी
  • उत्तर प्रदेश के लिए  प्र

13. विवरण चिन्ह-Sign of Following ( :- ) :

विवरण चिन्ह (:-)का प्रयोग वाक्यांश के विषयों में कुछ सूचक निर्देश आदि देने के लिए किया जाता है।
उदहारण :
  • आम के निम्न फायदे है:-
  • संज्ञा के तीन मुख्य भेद होते हैं:-
  • वचन के दो भेद है:-

14. विस्मरण चिन्ह या त्रुटिपूरक चिन्ह-Oblivion Sign (^) :

विस्मरण चिन्ह (^) का प्रयोग लिखते समय किसी शब्द को भूल जाने पर किया जाता है।
उदहारण :
  • राम ^ जएगा।
  • श्याम में रहते थे।
  • राम बहुत ^ लड़का है।
  • मैंने तुमसे वो बात ^ थी।

15. पुनरुक्ति सूचक चिन्ह-Repeat Pointer Symbol (,,) :

पुनरुक्ति सूचक चिन्ह (,,) का प्रयोग ऊपर लिखे किसी वाक्य के अंश को दोबारा लिखने से बचने के लिए किया जाता है।
उदहारण :-
January
,,

16. दीर्घ उच्चारण चिन्ह- (S) :

जब वाक्य में किसी विशेष शब्द के उच्चारण में अन्य शब्दों की अपेक्षा अधिक समय लगता है तो वहां पर दीर्घ उच्चारण चिन्ह (S) का प्रयोग किया जाता है।
उदहारण :
  • || || | | | S || SS (16 मात्राएँ, | को एक मात्रा तथा S को 2 मात्रा माना जाता है।)

17. तुल्यता सूचक चिन्ह-Equivalence indicator symbol (=) :

वाक्य में दो शब्दों की तुलना या बराबरी करने में तुल्यता सूचक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है।
उदारहण :
  • अच्छाई = बुराई
  •  = बा
  • 5 और 5 = 10

18. निर्देशक चिन्ह-Dash (―) :

निर्देशक चिन्ह ()का प्रयोग विषय, विवाद, सम्बन्धी, प्रत्येक शीर्षक के आगे, उदाहरण के पश्चात, कथोपकथन के नाम के आगे किया जाता है।
उदहारण :
  • श्री राम ने कहा  सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए।
  • जैसे  फल सब्जी मसाले इत्यादि।
लेखन कौशल की विशेषताएं  
  • शब्द से शब्द के बीच एवं पंक्ति से पंक्ति के बीच सामान्य दूरी होनी चाहिए |
  • पंक्ति सीधी व स्पष्ट हो |
  • लिखी हुई पाठ्यवस्तु स्पष्ट हो जो आसानी से पढ़ी जा सके |
  • सभी अक्षर सुंदर और समानुपात में हो |
  • लेखन कक्षा के अनुरूप हो |
  • लेखन में व्याकरण आत्मक त्रुटियां नहीं होनी चाहिए |

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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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