UNIT-1 हिंदी शिक्षण का सामान्य परिचय
भाषा -
“भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम सोचते हैं तथा अपने विचारों को
व्यक्त करते हैं |”
मनुष्य
एक सामाजिक प्राणी है | समाज में रहते हुए उसे परस्पर विचार
विनिमय करना पड़ता है| विचार विनिमय के लिए वह शब्दों तथा
वाक्यों का प्रयोग करता है आदि काल में मानव ने जब भाषा का प्रयोग नहीं किया होगा
तो वह संकेतों के माध्यम से अपने विचारों का आदान प्रदान करता रहा होगा परंतु
धीरे-धीरे मानव में विकास के साथ-साथ भाषा का विकास हुआ|
संपूर्ण
जीवमंडल में केवल मनुष्य को ही भाषा का अमूल्य वरदान ईश्वर से मिला है |
भाषा के कारण ही मनुष्य मनुष्य है और
सभी जीव धारियों में सर्वोत्तम स्थान है परंतु भाषा के आविष्कार के लिए पहले से ही
मानव का होना आवश्यक था| भाषा एक माननीय कलाकृति है भाषा
विचारकों का मत है कि भाषा ईश्वरीय वरदान नहीं है अपितु ध्वनियों शब्दों बोली से
विकसित एवं परिष्कृत होकर आज इस अवस्था तक पहुंची है भाषा के विकास और मानव के
विकास का सीधा संबंध है भाषा को यदि प्रकृति की देन मानते हैं तो यह प्रकृति की
सर्वश्रेष्ठ रचना है भाषा भाव के कारण ही मनुष्य इतना उन्नत प्राणी बन सका है
बुद्धि तथा विचार चिंतन शक्ति के कारण ही मानव भाषा का अधिकारी बन सका है | मनुष्य मुंह की सहायता से विविध प्रकार
की ध्वनियों को उच्चरित करके उत्पन्न करता है जिससे अक्षर तथा शब्द प्रकट होते हैं
आज भी मनुष्य की अनुभूतियों को शाब्दिक भाषा से अभिव्यक्त करना संभव नहीं है उसे
अभिव्यक्ति के लिए मूक भाषा का ही प्रयोग किया जाता है यह अक्सर व्यक्तियों को कहते सुना है इसी
अभिव्यक्ति के लिए हमारे पास उपयुक्त शब्द नहीं है अधिक दुखी व्यक्ति अपनी वेदनाओं
की अभिव्यक्ति अश्रु धारा से ही कर पाता है | इस
प्रकार भाषा के दो रूप हैं -
Ø शाब्दिक भाषा (लिखित भाषा)
Ø अशाब्दिक भाषा (सांकेतिक
भाषा )
शिक्षा के क्षेत्र में या व्यक्तिगत जीवन और अन्य
शोध अध्ययनों के निष्कर्ष से यह पाया गया है कि शाब्दिक (लिखित) य अशाब्दिक (सांकेतिक) दोने ही भाषाओं
का अंतः क्रिया में सामान्य महत्व है | शिक्षक कक्षा नियंत्रण तथा विद्यार्थियों को
अभिप्रेरणा अपने हाव-भाव से ही देता है |
भाषा का अर्थ - भाषा शब्द संस्कृत भाषा की "भाष" धातु
से बना है जिसका अर्थ है- बोलना या कहना अर्थात भाषा वह है जिसे बोला जाए|
भाषा वक्ता द्वारा विचारों
को श्रोता तक पहुंचाती है अर्थात यह विचार विनिमय का साधन है| भाषा मानव उच्चारण अवयवों
से उच्चारित सार्थक ध्वनि प्रतीकों की वह संरचनात्मक व्यवस्था है जिसके द्वारा
समाज विशेष के लोग आपस में विचार विनिमय करते हैं | लेखक कवि या वक्ता के रूप में अपने अनुभव को
व्यक्त करते हैं तथा अपने व्यक्तिगत और सामाजिक व्यक्तित्व विशिष्टता के संबंध में
जाने अनजाने में जानकारी देते हैं |
भाषा की परिभाषाएं - व्यापक रूप में भाषा व साधन है जिसके माध्यम से हम
सोचते हैं और विचार प्रकट करते हैं| विभिन्न विद्वानों ने भाषा की परिभाषाएं निम्न
प्रकार से दी हैं जो इस प्रकार हैं -
"भाषा व साधन अथवा माध्यम हैं, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों,भावों तथा इच्छाओं की
अभिव्यक्ति करता है |"
सुमित्रानंदन पंत के अनुसार - "भाषा संसार का नादमय चित्र
है, ध्वनि स्वरूप है, यह विश्व की ह्रदयतंत्री की
झंकार है, जिसके स्वर में अभिव्यक्ति
होती है|"
रामचंद्र वर्मा के अनुसार - "मुख से उच्चारित होने वाले
शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिसके द्वारा मन की बात बताई जाती है वह भाषा
कहलाती है |"
स्वीट के अनुसार - "धनात्मक शब्दों द्वारा
विचारों की अभिव्यक्ति ही भाषा है |"
काव्यादर्श के अनुसार - "यदि शब्द रूप ज्योति से यह
समस्त संसार प्रदीप्त ना होता तब यह संसार अंधकारमय हो जाता |"
क्रोच के अनुसार - "भाषा अभिव्यक्ति की दृष्टि
से उच्चरित एवं सीमित ध्वनियों का संगठन है|"
भोलानाथ तिवारी के अनुसार - "भाषा उच्चारण अवयवों से
उच्चरित स्वेच्छाचारी ध्वनि प्रतीकों की वह अवस्था है जिसके द्वारा एक समाज के लोग
आपस में भावों और विचारों का आदान प्रदान करते हैं |"
सीताराम चतुर्वेदी के
अनुसार - "भाषा के आविर्भाव से समस्त
मानव मंडल गुंगों की विराट नगरी बनने से बच गया और इसी के परिणाम स्वरुप जीवमंडल
में सर्वोच्च स्थान पाया है |"
भाषा की प्रकृति - भाषा की परिभाषा में उसकी
विशेषताओं का उल्लेख किया गया है जिससे भाषा की प्रकृति का बोध होता है भाषा की
प्रकृति इस प्रकार है -
भाषा व विचारों का अटूट संबंध होता है भावों और विचारों को
अभिव्यक्त करने के लिए मनुष्य ने भिन्न-भिन्न ध्वनि संकेतों भाषा का विकास किया है
|परंतु यह भी बात सत्य है कि
जैसे जैसे मनुष्य भाषा सीखता जाता है और उसकी भाषा में विकास होता जाता है वैसे
वैसे वह विचार करने और विचार विनिमय करने में भी सक्षम होता जाता है |इस प्रकार भाषा एवं विचारों
का विकास एक दूसरे पर निर्भर करता है इसीलिए भाषा और विचारों का अटूट संबंध होता
है|
भाषा अभिव्यक्ति का एक संकेतिक साधन है - भाषा अभिव्यक्ति का
सांकेतिक साधन है भाषा के रूप में प्रयुक्त ध्वनि संकेतों द्वारा समाज के सदस्य
अपने मनोभावों से आपसी विचार विनिमय करते हैं|
भाषा अर्जित संपत्ति है - मनुष्य में भाषा सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति
होती है वह जिस समाज में रहता है उसी के सदस्यों का अनुकरण करके उस समाज की भाषा
सीख जाता है|
भाषा गतिशील तथा परिवर्तनशील होती है - भाषा स्थिर नहीं होती वरन
वह गतिशील होती है किसी भाषा विशेष को बोलने वाले लोग उसमें कम से कम परिवर्तन
करना चाहते हैं परंतु देश काल तथा विकास के साथ-साथ भाषा के रूप में परिवर्तन होता
रहता है भाषा का कोई अंतिम स्वरूप नहीं होता है जैसे आज से 50 वर्ष पूर्व की भाषा और आज
की भाषा में बहुत अंतर है|
भाषा का संबंध परंपरा से होता है - भाषा का संबंध परंपरा से
होता है यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी द्वारा ग्रहण की जाती है इसके मूल रूप में
थोड़ा बहुत परिवर्तन तो कर सकते हैं परंतु इस में आमूलचूल परिवर्तन या बिल्कुल नई
भाषा का सृजन एक साथ नहीं कर सकते|
भाषा मानव की विशेषता है - जहां तक भावाभिव्यक्ति कि
बात है तो संंसार केे सभी प्राणी करते हैं और अपने अपने तरीके से करते हैं
सामान्यतः इन्हीं तरीकों को उनकी भाषा कहते हैं और विचार प्रधान एवं विकासशील भाषा
तो मनुष्य की ही विशेषता है|
मनुष्य एक से अधिक भाषा सीख सकता है - भाषा सामाजिक व्यवहार का
साधन होता है जब मनुष्य को विभिन्न भाषियों से व्यवहार करना है तो वह उनकी भाषा को
सीख लेता है पर इस भाषा को सीखने के लिए उसे विशेष प्रयत्न करना पड़ता है|
भाषा की विशेषताएं - भाषा की परिभाषा में उसकी विशेषताओं का उल्लेख
किया गया है परंतु भाषा की कुछ अन्य विशेषताएं इस प्रकार हैं -
भाषा का अर्जन अनुकरण द्वारा - मानव भाषा अनुवांशिक नहीं
होती बल्कि अनुकरण प्रक्रिया द्वारा सीखी और व्यक्ति की जाती है संस्कृति के अन्य
उपादानों के समान इसका भी अनुकरण किया जाता है यदि किसी बच्चे को जन्म के पश्चात
अमेरिका भेज दिया जाए तो वह बच्चा भारतीय भाषाएं नहीं बोल सकता यदि भाषा अनुवांशिक
होती तो वह बालक भारतीय भाषा ही बोलता|
भाषा में परिवर्तनशीलता - भाषा परंपरा से चली आ रही है व्यक्ति परंपरा तथा
समाज से उसका अर्जन करता है एक व्यक्ति उसे
उत्पन्न नहीं कर सकता किंतु वह उसमें परिवर्तन आदि कर सकता है यदि भाषा का कोई जनक
तथा जननी है तो वह परंपरा तथा समाज है |
भाषा संयोगावस्था की ओर जाती है -भाषा वियोगावस्था से
संयोगावस्था की ओर जाती है कुछ
विद्वानों का विचार था कि भाषा दोनों परिस्थितियों से होकर गुजरती है भाषा वस्तुतः
संयोगावस्था से वियोगावस्था की ओर जाती है वियोग से
तात्पर्य - विघटन से है जैसे मोहना: खादति से मोहन खाता है |अतः यह कहा जा सकता है कि
संस्कृत से हिंदी वियोगात्मक हो चुकी है |
सृजनात्मकता - किसी भी भाषा की शब्दावली एवं व्याकरण तो निश्चित
व निर्धारित है किंतु व्यक्ति उनका प्रयोग रुचि स्थिति के अनुसार करता है भाषा
प्रयोग की यही सृजनात्मकता है|
यादृच्छिकता - किसी भी भाषा की शब्दावली एवं संरचना (व्याकरण) का
निर्धारण किसी तर्क के आधार पर नहीं होकर उसी भाषायी समाज की इच्छा के अनुसार हुआ
है|
भाषा ध्वनियों का समूह है - भाषा में ध्वनियों दो प्रकार की होती हैं
सार्थक ध्वनि और निरर्थक ध्वनि लेकिन भाषा का संबंध केवल सार्थक और व्यक्त
ध्वनियों से है यदि अनुकरण आत्मक सिद्धांत के आधार पर भाषा के कई सार्थक शब्द पशु
पक्षियों आदि की अब्यक्त ध्वनियों से बने हैं जैसे - चहचहाना दहाड़ना खटर पटर आदि |
राजभाषा के रूप में हिंदी - राजभाषा का शाब्दिक अर्थ
राज्य की कामकाज की भाषा से है जो भाषा किसी भी राज्य के राजकीय कार्यों के लिए
प्रयुक्त होती है वह भाषा उस राज्य की राजकीय भाषा कहलाती है प्राचीन काल में
राजाओं और नवाबों के समय में इस भाषा को दरबारी भाषा कहा जाता था राजभाषा सरकारी
कामकाज चलाने की आवश्यकता की उपज है|
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत देश में राज्य भाषा की आवश्यकता
अनुभव की गई |
भारत देश में हिंदी को
राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ है राजभाषा शब्द एक संवैधानिक शब्द है हिंदी भाषा को
14 सितंबर सन 1949 को संवैधानिक रूप से
राजभाषा घोषित किया गया था इसीलिए 14 सितंबर को प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस के रूप में
मनाया जाता है|
राजभाषा देश को अपने प्रशासनिक लक्ष्यों के द्वारा राजनीतिक आर्थिक
इकाई में जोड़ने का काम करती है अर्थात राजभाषा की प्राथमिक शर्त राजनीतिक
प्रशासनिक एकता कायम करना है राजभाषा कोई भी भाषा हो सकती है स्वभाषा या परभाषा
जैसे मुगल शासक अकबर के काल से लेकर लार्ड मैकाले के समय में फारसी राजभाषा थी जो
कि विदेशी भाषा थी जबकी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा
दिया गया जो कि स्वभाषा भाषा है जबकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा
दिया गया जो कि स्वभाषा है राजभाषा का एक निश्चित मानक होता है जिसके साथ छेड़छाड़
का प्रयोग नहीं किया जा सकता|
स्वतंत्रा उपरांत भारत में संविधान के अनुच्छेद 343 में वर्णित किया गया है कि संघ की
राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी सन 1963 की राजभाषा अधिनियम में राजकीय कार्यों में हिंदी
भाषा के प्रयोग पर अधिकाधिक बल देने की बात कही गई है सन 1976 की राजभाषा नियम में कहा
गया है कि केंद्रीय सरकार के किसी एक मंत्रालय विभाग और किसी दूसरे मंत्रालय विभाग
के बीच पत्रादि हिंदी अथवा अंग्रेजी में हो सकते हैं हिंदी के पत्र के उत्तर
केंद्र सरकार के कार्यालयों से हिंदी भाषा में ही दिए जाएंगे|
राष्ट्रभाषा के रूप में
हिंदी - राष्ट्रभाषा का शाब्दिक
अर्थ समस्त देश में प्रयुक्त भाषा अर्थात आमजन की भाषा जो भाषा समस्त राष्ट्र में
जनजन के विचार विनिमय का माध्यम हो वह राष्ट्र भाषा कहलाती है|
पंडित जवाहरलाल नेहरू के अनुसार - "हिंदी का ज्ञान राष्ट्रीयता
को प्रोत्साहन देता है और हिंदी अन्य भाषाओं की अपेक्षा सबसे अधिक राष्ट्रभाषा
बनने की योग्यता रखती है|"
राजर्षि टंडन के अनुसार - "हिंदी को राष्ट्रभाषा इसलिए
नहीं मानता कि उसे अधिक व्यक्ति बोलते समझते हैं इस कारण भी नहीं कि भारतीय संस्कृति
का प्रतीक है इसलिए नहीं कि वह प्रगतिशील और वैज्ञानिक भाषा है मैं हिंदी को
राष्ट्रभाषा इसलिए मानता हूं कि इसमें हमारी क्षमता की प्रति अंग्रेजी को निष्कासन
करने की क्षमता है|"
राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय एकता एवं अंतरराष्ट्रीय संवाद संपर्क की उपज
होती है किंतु राष्ट्रीय की जनता जब स्थानीय एवं तात्कालिक हितों व पूर्व ग्रहों
के ऊपर उठकर अपने राष्ट्र की भाषाओं में से किसी एक भाषा को चुनकर उसे राष्ट्रीय
अस्मिता का एक आवश्यक उपादान समझने लगती है तो वही राष्ट्रभाषा है स्वतंत्रता
संग्राम के दौरान राष्ट्रभाषा की आवश्यकता हुई तब भारत में इस आवश्यकता की पूर्ति
हिंदी ने की यही कारण है कि हिंदी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विशेषता 1900 से 1947 राष्ट्रभाषा बनी
राष्ट्रभाषा का कोई संवैधानिक शब्द नहीं बल्कि यह प्रयोगात्मक व्यावहारिक मान्यता
प्राप्त शब्द है राष्ट्रभाषा सामाजिक सांस्कृतिक मान्यताओं परंपराओं के द्वारा
सामाजिक सांस्कृतिक स्तर पर देश को जोड़ने का काम करती है अर्थात राष्ट्रभाषा की
प्राथमिक शर्त देश में विभिन्न समुदायों के बीच भावनात्मक एकता स्थापित करना है|
15 अगस्त सन 1947 को जब हमारा देश आजाद हुआ तब हमारे देश को एक सूत्र में पिरोने और
यहां की सर्व प्रमुख व्यवस्थाओं में से भाषा के निर्धारण भी प्रमुख कार्य था 1956 में राष्ट्रीय भाषा संगठन
ने भारत को 14
विभागों अथवा प्रांतों में
विभाजित कर उनकी 14 भाषाएं निर्धारित की थी धीरे-धीरे उन भाषाओं और प्रांतों की संख्या
में वृद्धि होती गई और प्रांतों में परस्पर एकरूपता और अखंडता बनाए रखने के लिए एक
राष्ट्रीय भाषा का भी निर्धारण किया गया और हमारे राष्ट्र भारत की राष्ट्रभाषा
हिंदी माना गया हिंदी हमारी राष्ट्र की पहचान है और हमारी भारतीय भाषा है जो समस्त
भारतीयों को एकता और अखंडता का संदेश देती है हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में
स्वीकार करने के उपरांत इसे संविधान द्वारा मान्यता प्रदान की गई है और इसे शासन
प्रशासन एवं राजकाज की भाषा के रूप में दर्जा दिया गया है|राष्ट्रीय भाषा का महत्व
इसलिए भी है कि यह समस्त भारतीयों में चाहे वह कोई भी भाषा का हो उसमें
राष्ट्रीयता के भाव को जागृत करती है और संपूर्ण राष्ट्र को एकता और अखंडता के
सूत्र में बांध कर रखती है|
भाषा विदो का कहना है कि युवा पीढ़ी की भाषा को विकृत कर दीजिए तो वह
स्वयं ही पतन की ओर चला जाएगा इसी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि राष्ट्रभाषा
किसी राष्ट्र के विकास के लिए क्या मायने रखती है क्योंकि भाषा का प्रभाव संस्कृति
पर और संस्कृति का प्रभाव भाषा से जुड़ा हुआ होता है|
हिंदी शिक्षण का महत्व - संसार के सभी प्राणियों के
पास अपनी अपनी भाषाएं हैं परंतु विचार प्रधान भाषा केवल मनुष्य के पास है मानव
अपने पूर्वजों के भावों विचारों तथा अनुभव को सुरक्षित रखने में भाषा के द्वारा ही
सफल हुआ है और मनुष्य की भाषा ही शिक्षा एवं ज्ञान का प्रमुख आधार है किसी भी भाषा
के द्वारा ही किसी समाज का ज्ञान सुरक्षित रहता है साथ ही भाषा सामाजिक एकता में
सहायता पहुंचाती है भाषा के द्वारा ही शारीरिक विकास बौद्धिक विकास एवं व्यक्तित्व
का विकास होता है भाषा ही भावात्मक एकता राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय
भावनाओं का विकास करती है क्षेत्रीय भाषाओं के बीच कड़ी बनकर हिंदी राष्ट्रभाषा
लोगों को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाती है और उन में एकीकरण की भावना की वृद्धि करती
है
बर्ट अनुसार -भाषा विहीन व्यक्ति केवल
बुद्धिहीन ही नहीं होते बल्कि भाव हीन भी हो जाते हैं|
गांधीजी के अनुसार -व्यक्ति के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा का ज्ञान
उतना ही आवश्यक है जितना कि शिशु शरीर के विकास के लिए माता का दूध|
पाई महोदय के अनुसार -"भाषा का इतिहास भी सभ्यता
का इतिहास है |"
क्योंकि मानव संस्कृति
सभ्यता दर्शन तथा इतिहास आदि का स्पष्ट चित्रण हमारी भाषाओं के माध्यम से ही
प्रतिबिंबित होता है|
ज्ञान का प्रमुख आधार - भाषा के माध्यम से ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी का
संचित ज्ञान सामाजिक विरासत के रूप में दूसरी पीढ़ी को सौंप देते हैं भाषा के
माध्यम से ही हम प्राचीन और नवीन आत्मा और संसार पहचानने की सामर्थ प्राप्त करते
हैं भाषा के द्वारा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान होती है|
भावाभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन -भाषा की दक्षता एक विशिष्ट
सूक्ष्मता और सहज दिशा द्वारा उत्पन्न होती है किसी भी भाषा को कोई भी बच्चा जन्म
के कुछ समय पश्चात ही सीखना प्रारंभ कर देता है वह भाषा के माध्यम से ही अपने
भावों की अभिव्यक्ति सरलता से व्यक्त कर पाता है|
भाषा राष्ट्र की एकता का
आधार
समस्त राष्ट्र एवं देश का प्रशासन का संचालन भाषा के माध्यम से होता
है इसके साथ ही कोई अन्य भाषा भी विभिन्न राष्ट्रों के बीच विचार विनिमय व्यापार
एवं सांस्कृतिक आदान प्रदान का साधन बनती है इसीलिए भाषा राष्ट्रीयता का आधार है|
सर्वांगीण विकास में सहायक - जिस प्रकार बालक के विकास
में सबसे अहम भूमिका माता की होती है उसी प्रकार बालक के सर्वांगीण विकास में भाषा
अपनी भूमिका का निर्वहन करती है शिक्षा के द्वारा बच्चे की शारीरिक मानसिक सामाजिक
चारित्रिक अध्यात्मिक और व्यवसायिक विकास करने पर सर्वाधिक बल दिया जाता है यह सब
शिक्षा के माध्यम से संभव है|
साहित्य कला संस्कृति एवं सभ्यता का विकास - साहित्य भाषा की सहायता से
लिखा जाता है भाषा का विकास उसके पल्लवित साहित्य के दर्पण में देखा जाता है भाषा
के द्वारा ही आज हम अपने समाज के आचार व्यवहार तथा अपनी विशिष्ट जीवनशैली से अवगत
होते हैं और भाषा के द्वारा ही हम नवीन अविष्कारों के आधार पर एक नवीन सृष्टि का
सृजन करते हैं तथा अपनी भाषा को उन्नत बनाते हैं|
"भाषा की कहानी वास्तव में सभ्यता की कहानी है|"
अतः यह कहा जा सकता है कि भाषा शिक्षा और ज्ञान का स्रोत है इसके
द्वारा मानव जाति एक समाज के साथ-साथ एक राष्ट्र में बनती है मानव का शारीरिक
मानसिक सामाजिक बौद्धिक विकास व्यक्तित्व का विकास भाषा के माध्यम से ही संभव है
साथ ही हमें एक दूसरे के विचार भाव एवं अनुभव का पता लगाने और उन से अवगत होने के
लिए एक दूसरे की भाषा को सीखना अति आवश्यक है देश-विदेश से संपर्क स्थापित करने के
लिए एक निश्चित भाषा का होना अति आवश्यक है|
हिंदी शिक्षण के उद्देश्य - भाषा अभिव्यक्ति का
महत्वपूर्ण साधन है मानव अपने भावों, मनोभावों, इच्छा आदि की अभिव्यक्ति भाषा के माध्यम से करता
है हिंदी हमारी मातृभाषा और राष्ट्रभाषा भी है भाषा हमारे चिंतन मनन एवं विज्ञान
का आधार है प्रत्येक विषय के अध्ययन के लिए कोई ना कोई उद्देश्य होता है हिंदी
भाषा सीखने का प्रमुख उद्देश्य यह है कि विद्यार्थी मौखिक एवं लिखित रूप से उस
भाषा में विचार-विमर्श कर सके हिंदी भाषा को मात्र भाषा के रूप में भारत के
विभिन्न भागों में पढ़ाया जाता है|
हिंदी शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य -
1 सामान्य उद्देश्य
2 विशिष्ट उद्देश्य
इन उद्देश्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन इस प्रकार है -
सामान्य उद्देश्य - 1. शुद्ध सरल स्पष्ट भाषा में अपने भावों विचारों में
व्यक्त करना|
2
शुद्ध बोलना तथा शुद्ध व
स्पष्ट लिखना|
3
उचित हाव-भाव आरोह तथा
अवरोह के साथ वाचन कला में निपुण बनाना|
4
विद्यार्थियों में
स्वाध्याय के प्रति रुचि उत्पन्न करना|
5
विद्यार्थियों के शब्दकोश
में वृद्धि करना|
6
विद्यार्थियों की सृजनात्मक
कार्य शैलियों जैसे नाटक भाषण और वाद-विवाद कवि गोष्ठी अंत्याक्षरी कवि सम्मेलन
आदि में भाग लेना|
7
विद्यार्थियों में
साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रुचि लेने का विकास करना|
8
विद्यार्थियों में व्याकरण
संबंधी नियमों का ज्ञान कराना | 9 विद्यार्थियों को व्याकरण संबंधी नियमों का ज्ञान
कराना|
विशिष्ट उद्देश्य - हिंदी शिक्षण के विशिष्ट (मूल) उद्देश्यों को हम
निम्न भागों में विभक्त कर सकते हैं-
1. ज्ञानात्मक उद्देश्य
2. अनुप्रयोगात्मक उद्देश्य
3. सृजनात्मक उद्देश्य
4. कौशलात्मक उद्देश्य
ज्ञानात्मक उद्देश्य - ज्ञानात्मक उद्देश्य का तात्पर्य विद्यार्थियों को
भाषा और साहित्य की मूलभूत बातों का ज्ञान प्रदान करना है इसके अंतर्गत निम्न के
उद्देश्यों का निर्धारण कर सकते हैं -
1
विद्यार्थियों को शब्द और
वाक्य रचना का ज्ञान कराना|
2
विद्यार्थी को हिंदी की
ध्वनियों का ज्ञान कराना|
3
विद्यार्थी को माध्यमिक
स्तर पर हिंदी साहित्य के इतिहास की सामान्य जानकारी देना|
5
विद्यार्थी को भाषा तक
क्यों धन्यवाद ध्वनि समूह शब्द शक्ति मुहावरे वाक्य रचना एवं लिपि आदि का ज्ञान
कराना|
6
विद्यार्थी को रचनात्मक
कार्यों के प्रति उन्मुख करना| .
7 विद्यार्थियों को सामाजिक
सांस्कृतिक प्रोग्राम आदि तथ्यों से परिचित कराना|
8
विद्यार्थियों को विश्लेषण
वर्गीकरण तुलना तथा उदाहरण देने की क्षमता का विकास करना|
अनुप्रयोगात्मक उद्देश्य - अनुप्रयोगात्मक उद्देश्य का तात्पर्य यह है कि
विद्यार्थी शिक्षक द्वारा प्राप्त ज्ञान को अपने जीवन में किस रूप में उपयोगी बना
सकता है जैसे विद्यार्थी किसी विषय वस्तु को पढ़कर या शिक्षक द्वारा पढ़ाई गई विषय
वस्तु को अपने व अपने समाज के लिए प्रयोग में लाना|
1
विद्यार्थी किसी महापुरुष
की जीवनी से प्राप्त आदर्शों को समाज व देश के लिए प्रयोग में लाना|
2
विद्यार्थी के व्याकरणात्मक
त्रुटियों में सुधार लाना|
सृजनात्मक उद्देश्य - इस उद्देश्य को रचनात्मक उद्देश्य भी कहते हैं
सृजन से तात्पर्य नई मौलिक रचना की क्षमता पैदा करना हैं इसके अंतर्गत निम्नलिखित
उद्देश्य आते हैं-
1
विद्यार्थी को विभिन्न लेखन
शैलियों का ज्ञान कराना|
2
विद्यार्थी को लिखने की
प्रेरणा तथा प्रोत्साहन प्रदान करना |
3विद्यार्थियों में चिंतन
मनन कल्पना तथा तर्क शक्ति आदि का विकास करना |
4
विद्यार्थियों को साहित्य
क्रियाओं से परिचित कराना |
5विद्यार्थियों को स्वाध्याय
की प्रदान प्रेरणा देना|
कौशलात्मक उद्देश्य - इस उद्देश्य के अंतर्गत पढ़ना लिखना सुनना बोलना
अर्थ ग्रहण करना आदि सम्मिलित है इसके अंतर्गत निम्नलिखित उद्देश्य आते हैं -
1
विद्यार्थियों में सुनकर
अर्थ ग्रहण करने की क्षमता का विकास करना |
2
विद्यार्थी में तथ्यों को
पढ़कर भाव ग्रहण करने की क्षमता का विकास करना |
3
विद्यार्थियों में शुद्ध
उच्चारण व शुद्धलेखन करने की क्षमता का विकास करना |
4
विद्यार्थियों में
सूक्तियां मुहावरों उदाहरण की जानकारी देना|
5
विद्यार्थियों को सही आरोह
अवरोह के साथ भाषा का अध्ययन करना|
हिंदी शिक्षक के गुण एवं
अपेक्षाएं -
भारतीय परिपेक्ष में शिक्षक
को गुरु से संबोधित किया जाता रहा है आज भी सम्मान एवं श्रद्धा भाव से गुरु जी ही
कहते हैं शिक्षक का कार्य शिक्षण करना है|
गुरु शब्द का अर्थ - गुरु शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है गु तथा रू , गु का अर्थ है - अंधकार तथा
रू का अर्थ है - रोकने वाला अर्थात अंधकार को रोकने वाला या अंधकार को दूर करने
वाला ही गुरु है|
गुण - एक प्रभावशाली हिंदी शिक्षक में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है
-
Ø 1 साहित्य के प्रति अनुराग
Ø 2 प्रभावशाली प्रवचन
Ø 3 भावानुकूल वाचन
Ø 4 सद्व्यवहार
Ø 5 अन्य विषयों की जानकारी
इन गुणों का संक्षिप्त विवरण यहां दिया गया है जो इस प्रकार है-
साहित्य के प्रति अनुराग - हिंदी शिक्षक का साहित्य के प्रति अनुराग नहीं
होना वह स्वयं की रुचि साहित्य अध्ययन में नहीं होगी तो ऐसा शिक्षक साहित्य के
प्रति विद्यार्थियों में रुचि जागृत नहीं कर सकता इसलिए साहित्य के प्रति अनुराग
रखने वाला शिक्षक ही साहित्य में प्रवेश सफलतापूर्वक करवा सकता है|
प्रभावशाली प्रवचन - हिंदी शिक्षक का प्रवचन अत्यंत प्रभावशाली होना
चाहिए ताकि वह अपने सशक्त प्रवचन द्वारा सजीव वर्णन प्रस्तुत कर सके व्याख्या कर
सके वह सरल भाषा में विद्यार्थी को उसके स्तर के अनुसार समझा सके वही शिक्षक सफल
शिक्षण में सहायक होता है|
भावानुकूल वाचन - शिक्षक द्वारा किया गया आदर्श पाठ वास्तव में
आदर्श ही होना चाहिए भाव अनुकूल स्वर में उतार-चढ़ाव के साथ किया गया आदर्श वाचन
सफल शिक्षण में सहायक होता है|
सद्व्यवहार - हिंदी शिक्षक का दृष्टिकोण उदारता सहिष्णुता व
सहयोग से अनुप्राणित होना चाहिए ताकि विद्यार्थी भी उच्च कोटि के जीवन मूल्यों को
अपने जीवन में स्थान दे सके हिंदी साहित्य शिक्षक का यही कर्तव्य है कि वह अपने
सद्व्यवहार के मूल्यों को उचित स्थान
देने की प्रेरणा दें|
अन्य विषयों की जानकारी - हिंदी शिक्षक में इतना ज्ञान होना चाहिए कि पाठ्य
पुस्तक में यदि कोई तथ्य अन्य विषय से संबंधित आ जाए तो वह उस तत्व को सफलतापूर्वक
समझा सके इसलिए हिंदी शिक्षक के लिए अन्य विषयों का ज्ञान होना बहुत ही जरूरी है|
अपेक्षाएं - एक हिंदी शिक्षक में निम्नलिखित अपेक्षाएं होनी
चाहिए या एक हिंदी शिक्षक से विद्यार्थी निम्नलिखित अपेक्षाएं रखते हैं -
समानता का व्यवहार - शिक्षक को विद्यार्थी से संपर्क स्थापित करके उनकी
कठिनाइयों को समझना चाहिए और सभी विद्यार्थियों के प्रति समानता रखनी चाहिए किन्ही
विशेष विद्यार्थी को बढ़ावा नहीं देना चाहिए व्यवहार निष्पक्ष होना चाहिए और शिक्षक
को सभी विद्यार्थियों के नामों से परिचित होना चाहिए|
निपुण वक्ता - हिंदी शिक्षक को हिंदी शिक्षण सहायक सामग्री चित्र
भाषा प्रयोग पुस्तकालय के संगठन के प्रयोगों में रुचि व विषय वस्तु के अनुसार
शिक्षक को निपुण वक्ता होना चाहिए विद्यार्थी को कहानियां स्वभाविक ढंग से सुनानी
चाहिए और शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रति तत्पर रहना चाहिए |
संबंधित विषय का ज्ञाता - हिंदी शिक्षक को हिंदी विषय का संपूर्ण ज्ञान होना
चाहिए चाहे वह गद्य शिक्षण पद्शिक्षण या व्याकरण शिक्षण क्यों ना हो शिक्षक को
शिक्षण उचित आरोह अवरोह के साथ पठन एवं व्याकरण शुद्धता के साथ संवाद लेखन करता होना चाहिए|
नैतिक और चरित्रवान - प्रत्येक समाज की अपनी सभ्यता और संस्कृति होती है
और वह उन्हीं आदर्शों और मूल्यों में विश्वास करता है और इन सब के आधार पर व्यक्ति
के आचार संबंधी नियम बनते हैं इन नियमों को नैतिक नियम और उनको पालन करने के भाव
को नैतिकता कहा जाता है सत्यता इमानदारी कर्तव्य परायणता लगनशील आदि अपेक्षाएं
हिंदी शिक्षक में होनी चाहिए |
सामाजिकता - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है उसे समाज के प्रत्येक
गुणों से परिचित होना चाहिए जैसे प्रेम सहानुभूति सहयोग दया क्षमा सहनशीलता
इत्यादि अपेक्षाएं हिंदी शिक्षक से रखते हैं या यह सभी गुण एक शिक्षक में होने
चाहिए|.
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