Unit - 2
भाषिक
योग्यताओं का विकास
श्रवण
कौशल - किसी भी प्रकार की कोई भी
आवाज सुनने और सुनकर उसका अर्थ एवं भाव समझने की क्रिया को श्रवण कौशल कहा जाता है
श्रवण कौशल का सैद्धांतिक पक्ष ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत दिया गया है सामान्यतः
कानो द्वारा जो ध्वनि ग्रहण की जाती हैं और मस्तिष्क द्वारा उनकी अनुभूति तथा
प्रत्यक्षीकरण को श्रवण कहते हैं मौखिक भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त भाव एवं
विचारों को सुनकर समझना भाषा के संदर्भ में अर्थ बोध एवं भाव की प्रतीति सुनने के
आवश्यक तत्व होते हैं इस प्रकार जब कोई व्यक्ति हमारे सामने अपने भाव एवं विचार
मौखिक भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है और हम उसे सुनकर यथा भाव एवं विचार
समझते और ग्रहण करते हैं तो हमारी यह क्रिया सुनना अथवा श्रवण कहलाती है|
श्रवण कौशल के साधन -
श्रव्य साधनों
का संबंध कानों से है इन उपकरणों में मुख्यतः रेडियो ग्रामोफोन टेप रिकॉर्डर
टेलीफोन आदि हैं|
श्रवण कौशल की विधियां-
वार्तालाप -
एक
अध्यापक को शिक्षण के साथ साथ अपने विद्यार्थियों को परस्पर विचार-विमर्श चर्चा
वार्ता आदि के भी पर्याप्त अवसर प्रदान करने चाहिए जिससे उनमें श्रवण और
अभिव्यक्ति कौशल का विकास हो सके और साथ ही विद्यार्थियों की झिझक भी दूर हो सकेगी|
वाक्य रचना -
वाक्य
भाषा का महत्वपूर्ण चरण अथवा इकाई है स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो मुख से निकलने
वाली सार्थक ध्वनि समूह को जिसमें व्यक्ति अपनी आकांक्षाओं अभिवृत्तियों और
भावनाओं का निर्देशन करता है वह वाक्य कहलाता है अथवा पूर्ण अर्थ की प्रतीति कराने
वाले शब्द समूह का नाम वाक्य है|
प्रश्नोत्तर -
प्रश्नों
का बड़ा महत्व है मानव मन सदा जिज्ञासा से भरपूर रहा है उसकी जिज्ञासाओं के समाधान
हेतु प्रश्न करने की कला आनी चाहिए प्रश्नोत्तर पद्धति के जनक सुकरात को माना जाता
है प्रश्नोत्तर द्वारा हम भाषाई कौशलों के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा
सकते हैं अध्यापक को चाहिए कि वह बालकों से छोटे-छोटे प्रश्न करें और उन्हें भी
प्रश्न करने के अवसर दें|
प्रश्नोत्तर
प्रक्रिया को सफल बनाने हेतु चित्र का प्रदर्शन भी किया जा सकता है प्रश्नोत्तर
में स्पष्टता और बोधगम्यता होनी चाहिए प्रश्नों की भाषा सरल हो, प्रश्न
का आकार बड़ा ना हो ,प्रश्न ज्ञानवर्धक हो, तर्क
पर आधारित प्रश्न छात्रों की मानसिक क्षमता का विकास करते हैं अतः प्रश्न कौशल का
अभ्यास भी भाषाई कौशल के लिए बहुत आवश्यक है|
कहानी कथन -
कहानी
का नाम सुनते ही बच्चे चाहचाहा जाते हैं, अतः
बच्चों को कहानियां सुनाकर भी भाषाई कौशलों का विकास किया जा सकता है कहानियां
बच्चों का सर्वाधिक ध्यान आकर्षित करती है, अभिव्यक्ति
कौशल के विकासार्थ अधूरी कहानी सुना कर उसे पूरी करने को भी कहा जा सकता है इससे
बच्चे में बौद्धिक क्षमता, तर्कशक्ति, शब्द
संयोजन ,कल्पना
शक्ति का विकास होगा|
घटना वर्णन -
कहानी
के अतिरिक्त इसी पद्धति से बच्चों के जीवन में घटित कोई महत्वपूर्ण घटना, स्वप्न
आदि का वर्णन करने को भी कहा जा सकता है इससे बच्चों की अभिव्यक्ति में निखार आएगा, स्मृति, कल्पना
का घटना के साथ साथ घटना अनुसार भाव में परिवर्तन आवश्यक है, इसकी
शिक्षा बालक को अवश्य देनी चाहिए शिक्षक को चाहिए कि वह बालक द्वारा घटना सुनाते
समय उसकी बातों को ज्यों का त्यों स्वीकार करें ना कि बीच-बीच में टोंक कर उसके
विचारों को अवरुद्ध करें ऐसा करने से बालक की अभिव्यक्ति क्षमता पर बहुत बुरा
दुष्प्रभाव पड़ता है घटना के अतिरिक्त किसी मेले का दृश्य, बरसात
की मस्ती, पिकनिक
की स्मृति का वर्णन भी किया जा सकता है|
यात्रा वर्णन :-
किसी
भी यात्रा को अविस्मरणीय बनाने और उसका आनंद पुनः स्मृति के आधार पर लेने के लिए
उसका वर्णन करना आवश्यक है इस प्रकार वर्णन करने से भाषाई कौशलों का विकास होगा|
जब
बालक यात्रा का वर्णन करते समय अटक जाए तो उसे प्रश्न के माध्यम से उकसाना चाहिए
कि वह और वर्णन कर सके जैसे मेले के वर्णन का कहें कि अच्छा बताओ मेले में और क्या
क्या देखा मेले में तुमको क्या खरीदने का विचार आया अंत में इस यात्रा से हुई
लाभों को भी जानने की चेष्टा की जानी चाहिए इस प्रकार यात्रा का वर्णन पूर्ण रूप
से हो सकेगा|
काव्य पाठ -
काव्य
में लयबद्ध ध्वनियों का आनंद भरा होता है अतः बच्चों को वह काफी पंक्ति बहुत रोचक
लगती है अतः काव्य पाठ के अवसर विद्यालय में अक्सर देना चाहिए बच्चों की स्मरण
शक्ति अच्छी होती है अतः वे इन्हें आसानी से याद भी कर लेंगे बच्चों को अपने आसपास
के परिवेश और पशु पक्षी खिलौने से संबंधित कविता सुनना अच्छा लगता है इन कविताओं
की भाषा सरल और बोधगम्य होनी चाहिए बच्चों के स्तर की भाषा होनी चाहिए इन काव्य
पंक्तियों को गुनगुनाते हुए उन्हें थकान भी महसूस नहीं होनी चाहिए अध्यापक को
चाहिए कि वह कविता की पंक्तियों का समूह और आदर्श वाचन करें और कराएं|
ध्वनि
विभेदन ध्वनि विभेदन से तात्पर्य उन
बच्चों से है जिनमें 7 या 8 वर्ष
की आयु के ऊपर वाणी संबंधी कठिनाई होती
है उनमें विभिन्नन वाणी ध्वनियों ध्वनि विभेदन में भी कठिनाई होती है इसी कारण
उनकी वाचिक योग्यता कम पड़ जाती है ध्वनि विभेदन की समस्या उन बच्चों में हो सकती
है जो सामान्य रूप से सुन सकते हैं 3 और 4 वर्ष
की आयु के बच्चे वाणी ध्वनियों के बीच विभेदन करने में अशुद्धियां करते हैं परंतु
शीघ्र ही वे इस समस्या से उभर जातेे हैं कई बार जब वे सुनते हैं तो
ध्वनियों में विभेदन कर सकते हैं परंतु वे स्वयं ऐसी ध्वनियां उत्पन्न नहीं कर
पाते अतः यदि कोई अभिभावक उनके किसी किसी
गलत शब्द को दोबारा बोल कर सुनाते हैं तो बच्चों में आत्मविश्वास की भावना जन्म
लेती है यह इसलिए होता है कि वह सुन सकते हैं और विभेदन भी कर सकते हैं
परंतु कुछ ध्वनियों को बोल नहीं
सकते परंतु यह समस्या यदि बच्चे में 7 या 8 वर्ष
के बाद भी जारी रहती है तो शिक्षक को उपचारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है
वाणी संबंधी समस्या- किसी भी भाषा की ध्वनि
संरचना स्वर विज्ञान द्वारा परिभाषित होती है स्वर विज्ञान का संबंध वाणी के ध्वनि
स्वरूप से होता है जिसमें ध्वनि की उच्चता तथा स्वर मान सम्मिलित है तथा स्वानिकि
का संबंध स्वयं वाणी की ध्वनि से होता है वाणी संबंधी समस्या भिन्न-भिन्न हो सकती
है जैसे अस्थमा स्वरयंत्र दोष फटी आवाज इत्यादि
हकलाना और तुतलाना- हकलाना और तुतलाना से
तात्पर्य यह है कि बच्चे शब्द का शुद्ध व स्पष्ट उच्चारण नहीं कर पाते हैं प्रायः
हकलाना तुतलाना बच्चों में बाल्यावस्था में होता है उसमें बच्चों में वाणी का
विकास सामान्य रूप से होता है फिर भी वह हकलाते और तुतलाते हैं जैसे करेला
को का का का करेला दिल्ली को दीदी दीदी दिल्ली आदि
हड़बड़ाहट - जिन बच्चों की वाणी या भाषा
बोधगम नहीं रहती और आत्मविश्वास की कमी रहती है वह बच्चे हड़बड़ाहट का शिकार होते
हैं यही कारण है कि बच्चे जब तेजी से बोलते हैं तो वह कुछ अक्षरों को छोड़ देते
हैं या अस्पष्ट उच्चारण करते हैं या मिलाकर उच्चारण करते हैं यह अनुपयुक्त वाक्यों
का प्रयोग उच्चारण में करते हैं यद्यपि वह तेजी से बोलते हैं परंतु उनकी वाणी में
झटके लगते हैं और उनमे लय का अभाव होता है और बीच बीच में रुक भी जाते हैं तथा
जल्दबाजी में कुछ शब्दों को ख जाते हैं या शब्दों का लॉक कर जाते हैं ऐसे बच्चे
अपनी गति को कम करने का प्रयास करते हैं इससे उनकी हर बड़ा हट भी कम होने लगती है
श्रवण आधारित खेल- खो खो
कबड्डी आंखों में पट्टी बांधकर खेलना इत्यादि
वाचन कौशल - वचन
एक कला है वाचन की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता होती है | व्यक्ति का
सबसे बड़ा आभूषण उसकी संस्कृति एवं मधुर वाणी क्योंकि अन्य सभी आभूषण तो टूट या
घिस जाते हैं, किंतु वाणी सदा बनी रहती है | व्यक्ति का एकमात्र आभूषण उसकी मधुर
वाणी है,
अमृत भी मधुर वाणी में होता है, मनुष्य अपने
भावों एवं विचारों को बोल कर अथवा लिखकर व्यक्त करता है भावों एवं विचारों का संप्रेषण या प्रकाशन ही रचना है |
कैथरीन ओकानर के अनुसार - वाचन
वह सीखने की जटिल प्रक्रिया है जिसमें सुनने के गति
वाही माध्यमों का मानसिक पक्षों से संबंध होता है |
डॉ0 आर0जी0 कुशवाहा
के अनुसार - वाचन
सीखने की वह प्रक्रिया है जिसमें श्रवण करता
वाचक की ध्वनियों को ग्रहण करता है |
भाषाओं
के विश्लेषण से विदित होता है कि उनके अक्षरों की ध्वनिया विभिन्न स्थानों पर
विभिन्न प्रकार से निकलती है इसका अर्थ यह हुआ कि अक्षर ध्वनि परिस्थिति अनुसार
बदल जाती है इसलिए इन भाषाओं के विद्वानों ने शुद्ध उच्चारण के लिए नियमों को
प्रतिपादित किया है परंतु हिंदी देवनागरी लिपि में ऐसा नहीं है, अक्षरों की
ध्वनियाँ नहीं बदलती है इसलिए हिंदी के शिक्षक को भाषा सिखाने अथवा वाचन के लिए
अलग से आवश्यकता नहीं होती है वाचन में शब्दों के उच्चारण का विशेष महत्व होता है
भाषा शिक्षण वाचन एवं लिखने से आरंभ किया जाता है इस संबंध में सभी एकमत नहीं है
मांटेसरी शिक्षा प्रणाली लिखने से आरंभ करने के पक्ष में है परंतु अन्य सभी वाचन
से आरंभ करने के पक्षधर हैं क्योंकि ध्वनि से ज्ञान सरल है लिखने से बोलना सरल
होता है लिखने से ध्वनि और लिपि के रूप को समझने में समय भी लगता है लिपिबद्ध
शब्दों को सरलता से पढ़ाया जा सकता है |
वाचन शिक्षण की सार्थक विधियां - वाचन
शिक्षण में सार्थक विधियों को प्रयुक्त किया जाता है यहां वाचन की प्रमुख विधियों
का उल्लेख किया गया है –
1 -
अक्षर बोध विधि
2- देखो
और कहो विधि
3 -अनुकरण
विधि
4 - ध्वनि साम्य विधि
5 – कहानी
कथन
अक्षर
बोध विधि- यह सबसे प्राचीन शिक्षण विधि है, इसमें
सर्वप्रथम स्वर तथा व्यंजन शब्दों को पढ़ाया जाता है इस विधि में अक्षर की दूरियों
को प्रधानता दी जाती है शिक्षण में बालक को शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराया जाता है
इसके बाद बालक स्वर एवं व्यंजन का मिलान सीखता है यही मिलान वाक्यों की रचना में
सहायता करती है बालक पूर्ण वाक्य की रचना करके वाचन करने लगता है |
अक्षर बोध विधि से बालक का उच्चारण शुद्ध होता है अक्षर,शब्द
तथा वाक्य का क्रमबद्ध ज्ञान होता है अक्षरों में स्वर और व्यंजनों को मिलाने से
नए शब्दों की रचना होती है इस विधि से व्याकरण तथा भाषा संबंधी नियमों का बोध भी
बहुत सरलता से होता है |
देखो और कहो-
इस विधि में अक्षरों के बोध के स्थान पर शब्द बोध
कराया जाता है चित्र देखकर बालक को स्वयं ही उस शब्द का ध्यान आ जाता है चित्र ऊपर
अथवा नीचे बना रहता है उसे देखो और कहो बालक देखकर
समझने का प्रयास करता है फिर बोलता है चित्र बालक के परिचय की परिधि में हो बालक
के स्तर की वस्तुओं के चित्र तैयार किए जाते हैं उन्हीं को प्रयोग किया जाता है
चित्रों को श्यामपट्ट पद पर भी बनाया जा
सकता है |
इस बिधि की विशेषता है –
रोचकता, आकर्षण और मनोहरता चित्र के साथ शब्दों का चित्र बालकों के मानसिक पटेल पर
छा जाता है इन शब्दों और चित्रों के आधार पर वर्णमाला का ज्ञान भी दे दिया जाता है
इसमें क्रिया विपरीत होती है शब्दों के सीखने के बाद उनके अक्षरों को सीखता है इस
विधि से प्रचलित शब्दों का वाचन सरलता से सीख जाता है |
अनुकरण विधि-
विद्यार्थी अनुकरण विधि से ही अधिक सीखते हैं
परंतु हिंदी में अंग्रेजी की अपेक्षा कम उपयोग है हिंदी में प्रत्येक अक्षर का
ध्वनी निश्चित है जबकि अंग्रेजी अक्षर की ध्वनी निश्चित नहीं है शिक्षक के आदर्श
वाचन का अनुकरण जीवन पर्यंत छात्रों के काम आता है शिक्षक के उच्चारण के अनुकरण से
ही बालक शुद्ध उच्चारण सीखना है जिससे वाचन में शुद्धता आती है और भावपूर्ण वाचन
सीखता है अनुकरण विधि के लिए शिक्षक के वाचन में भावपूर्ण और शुद्ध उच्चारण होना आवश्यक होता है |
ध्वनि
साम्य विधि - इस
विधि के अंतर्गत ध्वनि की समानता रखने वाले शब्दों को साथ - साथ सिखाया जाता है एक
सी ध्वनि के कारण छात्र एक साथ सरलता से सीख लेते हैं जैसे धर्म-कर्म-गर्म समान ध्वनि होती है इसी प्रकार
क्रम श्रम धर्म शब्दों में समान ध्वनि है इस विधि में कभी-कभी अनावश्यक शब्द भी
सीखने पड़ जाते हैं जिन्हें हम प्रयोग में नहीं लाते है |
कहानी कथन - कहानी कथन विधि में बालक अधिक रुचि लेते हैं
कहानी को चार पांच वाक्यों में पूर्ण करके सुनानी चाहिए चित्रों की सहायता से
कहानी विधि अधिक प्रभावशाली होती है चित्रों को देखकर वाक्यों को पढ़कर कहानी जब
पूर्ण ज्ञान रोचकता से हो जाता है भाषा प्रवाह कहानी से ही विकसित होता है कहानी
विधि में छात्र अनुकरण से सीखते हैं कहानी कहते समय भाषा की शुद्धता तथा भाव पक्ष
को भी ध्यान में रखना चाहिए कहानी विधि से वाचन सीखते हैं तथा मनोरंजन भी होता है
कहानी विधि से उत्सुकता बढ़ती है और प्रेरणा मिलती है |
वचन
कौशल की क्रियाएं- वचन कौशल की क्रियाएं
निम्नलिखित है -
1 - पाठ्य पुस्तक
2 - लिखित
कार्य
3 - छात्र
क्रिया
4 - वार्तालाप
5 - कहानी
कथन
6 - भाषण
प्रतियोगिता
7 - वाद
विवाद प्रतियोगिता
8 - कविता
पाठ
पाठ्य वस्तु - पाठ्य वस्तु पढ़ते समय वाचन
अथवा मौखिक आत्म प्रकाशन हेतु पर्याप्त समय मिलता है विषय की व्याख्या प्रश्नोत्तर
सारांश कथन शब्द प्रयोग तथा वाक्य रचना से छात्रों को वाचन का प्रशिक्षण मिलता है
|
लिखित
कार्य - लिखित कार्य के पहले प्रकरण
पर परिचर्चा विचार-विमर्श विषय सामग्री चयन में भी अधिक समय मिल जाता है |
छात्र
क्रिया - छात्रों
की स्वयं स्वयं की क्रियाओं पढ़ने लिखने देखने तथा अनुभव तथा रूप से अपने भावों
विचारों को स्वतंत्र रूप में व्यक्त करने का अवसर मिलता है
वार्तालाप
-
विद्यार्थियों में स्वतंत्र रूप से वार्तालाप
की सामान्य योग्यता आती है इसका परिवार में साथियों में अधिक अवसर मिलता है अपनी
सामान आयु के बालको में वार्तालाप से भी सीखते हैं विद्यालय में होने वाली घटनाओं तथा
कार्यक्रमों के वर्णन से वार्तालाप का अवसर मिलता है |
कहानी कथन - कहानी
व मौखिक रचना वाचन का सर्वप्रिय साधन है छोटे बालक कहानी सुनते हैं तथा उनका
अनुकरण करने में अधिक रुचि लेते हैं क्योंकि उनका मनोरंजन होता है शिक्षक भी कहानी
विधि का प्रयोग छोटे बालकों के लिए करता है |
वाद
विवाद प्रतियोगिता - वाद विवाद प्रतियोगिता वाचन की दृष्टि से
अधिक उपयोगी है छात्र अभिनय में स्वयं भाग लेते हैं और उसकी पूर्व तैयारी भी करते
हैं |
कविता
पाठ - कविता पाठ प्राथमिक स्तर पर
कविता पाठ वाचन के लिए प्रधान विद्या है तथा उत्तम अवसर है कविता पाठ से रागात्मक
क्षमताओं का विकास होता है हृदय के भावों तथा अनुभूतियों को वाचन से व्यक्त किया जाता है |
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